बहुकोणीय एवं बहुपक्षीय साझेदारी बनाता है ब्रिक्स को अनूठा

Sabal Singh Bhati

बहुकोणीय एवं बहुपक्षीय साझेदारी बनाता है ब्रिक्स को अनूठा बीजिंग, 23 जून ()। 14वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की शुरूआत होने को है और उसके पहले कई स्तर और कई क्षेत्रों के ब्रिक्स प्रतिनिधि आपस में बैठकें कर चुके हैं। हर वर्ष जिस भी देश के पास अध्यक्षता की जिम्मेदारी होती है वह देश वर्ष भर तक शिक्षा, संस्कृति, विदेश, डिजिटल आदान-प्रदान, प्रौद्योगिकी सहयोग, आर्थिक, व्यापार और वित्त, सुरक्षा, पर्यावरण, परंपरागत चिकित्सा, स्वास्थ्य, विज्ञान एवं तकनीकी और कृषि जैसे तमाम विषयों पर बैठकें करता है। ऐसा करने से पांचों देशों के बीच इन क्षेत्रों में आपसी समझ और साझेदारी के नए रास्ते खुलते हैं और सहयोग से संगठन भी मजबूत बनता है। यही बहुकोणीय साझेदारी और बहुपक्षीय सहभागिता ब्रिक्स संगठन को अनूठा भी बनाता है।

आर्थिक रुप से देखा जाए तो दुनिया में विकसित देशों की संख्या बहुत ही कम है लेकिन विकासशील और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले राष्ट्र की संख्या काफी ज्यादा है। लिहाजा अब ब्रिक्स के पांच देशों से आगे निकलकर ब्रिक्स प्लस की अवधारणा पर भी विचार किया जा रहा है। जिससे बहुपक्षीय एवं बहुकोणीय किंतु समान विचार वाले देशों को एक उचित फोरम मिले और सभी देश अपनी बात रख सकें, इसी व्यवस्था पर जोर दिया जा रहा है। मुख्य रुप से एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिकी देश इस ब्रिक्स प्लस का हिस्सा बनने की संभावना अधिक है क्योंकि इन्हीं महाद्वीपों में विकासशील और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं अधिक हैं। इसके साथ ही समान विचार वाले देशों के सहयोग से ऐसी अर्थव्यवस्थाओं का उभरकर अच्छे नतीजे देने में सहूलियत होती है लिहाजा उन देशों से ब्रिक्स देशों के हाथ मिलाने से एक बेहतर समझ और सहभागिता विकसित होने की संभावना भी बढ़ जाती है।

खासतौर पर पश्चिमी गठजोड़ के उलट ब्रिक्स में ना केवल अधिक देशों के जुड़ने की संभावना है बल्कि समान चिंताओं वाले देशों और उसके निदान से संबंधित आपसी बातचीत वाले समूह को विकसित करने की भी संभावना है।

इसी कड़ी में शुरूआत ब्रिक्स के न्यू डेवेलपमेंट बैंक में ब्रिक्स के पांच देशों के अलावा भी पिछले वर्ष चार नए सदस्यों को जोड़ने से हुई है। इसमें दो देश एशिया, एक अफ्रीका और एक दक्षिण अमेरिका से है जिसमें बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, मिस्त्र और उरूग्वे को न्यू डेवेलपमेंट की सदस्यता दी गई है। यानी उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले और विकासशील सदस्य देशों को बैंकों के ऋण और लोन का लाभ भी मिलेगा और कई प्रोजेक्ट में आर्थिक सहयोग के दरवाजे भी खुलेंगे।

दुनिया के इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो कई समान विचारधारा एवं स्थितियों वाले देशों द्वारा ऐसे कई संगठनों का निर्माण किया जाता रहा है, जिनके जरिए उनके आपसी हितों की रक्षा होती रही है लेकिन पिछले 16 वर्षों से बने ब्रिक्स संगठन में विकासशील देशों की आवाज को पहली बार इतना मजबूत बनाया है। लिहाजा संयुक्त राष्ट्र संघ में शामिल 193 देशों वाली इस दुनिया में ब्रिक्स प्लस से जुड़ने की संभावना काफी अधिक है और सहयोग और साझेदारी के जरिए ही सभी देशों को आगे बढ़ने का रास्ता निकल सकता है। लिहाजा बहुपक्षीय एवं बहुकोणीय साझेदारी वाली ब्रिक्स की मूल भावना को पंख फैलाने का सुअवसर आता दिखाई दे रहा है।

(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

एएनएम

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Sabal Singh Bhati is CEO and chief editor of Niharika Times