जैसलमेर के मेघा गांव में 20 करोड़ साल पुराना जीवाश्म मिला

Tina Chouhan

जोधपुर। जैसलमेर जिले का छोटा-सा गांव मेघा इन दिनों वैज्ञानिकों, मीडिया और ग्रामीणों की चर्चा का केंद्र बन गया है। 300 घरों की इस बस्ती में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सबकी आंखों में उत्सुकता और दिलों में यह उम्मीद है कि इस खोज से गांव की तस्वीर बदलेगी। रेगिस्तान की रेत तले छुपा यह रहस्य अब गांव के भविष्य की उम्मीदों में बदल चुका है। मेघा गांव की यह खोज भारत के इतिहास का नया अध्याय लिख सकती है। लोगों का मानना है कि अब हमारा गांव दुनिया के नक्शे पर दर्ज होगा।

पर्यटक आएंगे, रोजगार मिलेगा और विकास की राह खुलेगी। ग्रामीण चाहते हैं कि यहां आकल गांव की तर्ज पर म्यूजियम बनाया जाए, जिससे जीवाश्म सुरक्षित रहे और लोग इसे देखने आएं। कैसे सामने आया यह रहस्य: जून 2025 में तालाब की खुदाई के दौरान बरसात से धुली मिट्टी के नीचे एक चट्टान से हड्डीनुमा ढांचा नजर आया। ग्रामीणों ने इसे पहले ऊंट या मवेशी की हड्डी समझा। गांव के मुकेश पालीवाल को शक हुआ और उन्होंने अधिकारियों को सूचना दी।

वैज्ञानिक जांच में खुलासा हुआ कि यह साधारण हड्डियां नहीं, बल्कि डायनासोर से भी पुराना मगरमच्छनुमा जीव फाइटोसौर का जीवाश्म है। पहरेदारी और पिंजरे में कैद धरोहर तालाब किनारे मिले इस जीवाश्म को अब पिंजरे और तारबंदी से ढक दिया गया है। गांव वाले दिन-रात बारी-बारी से इसकी पहरेदारी कर रहे हैं। उनकी एक ही जिद है कि यह खजाना गांव से बाहर नहीं जाएगा। वैज्ञानिकों की राय: डॉ. वी.एस. परिहार (डीन, जेएनवीयू, जोधपुर) : यह फाइटोसौर प्रजाति का जीवाश्म है। करीब 201 मिलियन वर्ष पुराना है और मगरमच्छ जैसा दिखने वाला सरीसृप था। डॉ. एन.डी.

इणखिया (भूजल वैज्ञानिक) : यह जीव संभवत: अपने अंडों की सुरक्षा कर रहा था। यह ट्राइऐसिक काल का जीव है, यानी डायनासोर से भी पुराना। भविष्य की संभावनाएं: जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यहां विस्तृत खुदाई और शोध करने की योजना बना रहा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस क्षेत्र में और भी जीवाश्म दबे हो सकते हैं। यदि यह सच हुआ, तो मेघा गांव सिर्फ जैसलमेर ही नहीं, बल्कि पूरे भारत का वैज्ञानिक और पर्यटन केंद्र बन सकता है।

मुख्य तथ्य: जीवाश्म की उम्र: करीब 201 मिलियन वर्ष (20 करोड़ साल), प्रजाति: फाइटोसौर (प्राचीन मगरमच्छनुमा सरीसृप), लंबाई: 1.5 से 2 मीटर, काल: लेट ट्राइऐसिक (डायनासोर से भी पुराना), स्थान: मेघा गांव, जैसलमेर, निगरानी: ग्रामीण 24 घंटे पहरा दे रहे हैं।

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