सीएए : पूर्वोत्तर में छात्र संगठनों ने मनाया काला दिवस

Sabal Singh Bhati
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गुवाहाटी, 11 दिसंबर ()। सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) विरोधी आंदोलन पूर्वोत्तर क्षेत्र में लौट आया है, प्रभावशाली नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (एनईएसओ) ने रविवार को संसद में कानून के पारित होने की तीसरी वर्षगांठ को पूरे क्षेत्र में काला दिवस के रूप में मनाया।

छात्र संगठनों ने काले झंडे और बैनर दिखाकर विवादास्पद कानून को रद्द करने की मांग को लेकर रविवार को पूर्वोत्तर राज्यों की राजधानियों में विरोध प्रदर्शन किया।

ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) सहित सात पूर्वोत्तर राज्यों के आठ छात्र संगठनों का एक शक्तिशाली छात्र निकाय, भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा 2019 में संसद में कानून पेश किए जाने के बाद से ही पूरे क्षेत्र में आंदोलन की अगुवाई कर रहा है। असम 2019 में सीएए विरोधी प्रदर्शनों का केंद्र था, एएएसयू ने विभिन्न स्थानों पर स्मारक सभाएं आयोजित कीं और उन पांच लोगों की याद में पुष्पांजलि अर्पित की, जो तीन साल पहले आंदोलन के दौरान गोलीबारी में मारे गए थे।

एएएसयू के अध्यक्ष उत्पल शर्मा ने कहा कि वे सीएए को स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि यह स्वदेशी लोगों और भारत के वास्तविक नागरिकों के खिलाफ है। उन्होंने गुवाहाटी में मीडिया से कहा, हम सीएए के खिलाफ अपना आंदोलन जारी रखेंगे। एनईएसओ के अध्यक्ष सैमुअल बी. जिरवा ने कहा, काला दिवस का अवलोकन भारत सरकार को यह संदेश देना है कि हम सीएए के खिलाफ हैं और साथ ही साथ हमारे लोगों और हमारे पश्चवर्ती लोगों को एक और राजनीतिक अन्याय की याद दिलाने के लिए जो सरकार ने पूर्वोत्तर के स्वदेशी लोगों पर लागू किया।

सीएए विरोधी विरोध पहली बार 2019 में असम, पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में शुरू हुआ था और कोविड-19 महामारी के फैलने से पहले 2020 तक जारी रहा था। असम में सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में कम से कम पांच लोग मारे गए, जिसमें कई दिनों तक बड़े पैमाने पर हिंसा और कर्फ्यू लगाया गया।

सीएए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों- हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों- को भारतीय नागरिकता देता है- जो विश्वास-आधारित उत्पीड़न का सामना करने के बाद 31 दिसंबर, 2014 तक बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से पलायन कर चुके हैं। इसे संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया था और दिसंबर 2019 में राष्ट्रपति की सहमति दी गई थी।

हालांकि अभी सीएए के तहत नियम बनाए जाने बाकी हैं।

केसी/एसजीके

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Sabal Singh Bhati is CEO and chief editor of Niharika Times