कैंसर लिम्फ नोड्स की तरह जंग खा रहा भ्रष्टाचार : सुप्रीम कोर्ट

Sabal Singh Bhati
4 Min Read

नई दिल्ली, 16 दिसंबर ()। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि शिकायतकर्ता और अभियोजन पक्ष भ्रष्ट लोक सेवकों के खिलाफ मामला दर्ज करने और उन्हें दोषी ठहराने के लिए गंभीर प्रयास करते हैं, ताकि प्रशासन और शासन भ्रष्टाचार के प्रदूषण से मुक्त हो सके।

शीर्ष अदालत ने कहा कि एक लोक सेवक को भ्रष्टाचार के मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर अवैध संतुष्टि के आरोप में दोषी ठहराया जा सकता है, भले ही कोई प्रत्यक्ष मौखिक या दस्तावेजी सबूत न हो।

न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा, यदि शिकायतकर्ता का रवैया शत्रुतापूर्ण हो जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है या परीक्षण के दौरान अपने साक्ष्य देने के लिए उपलब्ध नहीं होता है, तो अवैध परितोषण की मांग को अनुमति देकर साबित किया जा सकता है। किसी अन्य गवाह का साक्ष्य जो फिर से साक्ष्य दे सकता है, या तो मौखिक रूप से या दस्तावेजी साक्ष्य द्वारा या अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्य द्वारा मामले को साबित कर सकता है। लेकिन मुकदमा समाप्त नहीं होता और न ही आरोपी लोक सेवक के बरी होने का आदेश पारित होता है।

शीर्ष अदालत ने घोषणा की कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7, 13 (1) (डी) और धारा 13 (2) के तहत अभियुक्त, लोक सेवक के अपराध या दोष की अनुमान लगाने की अनुमति है।

पीठ में शामिल जस्टिस बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यन और बी.वी. नागरत्न ने कहा, हम आशा और विश्वास करते हैं कि शिकायतकर्ता और अभियोजन पक्ष यह सुनिश्चित करने के लिए ईमानदार प्रयास करते हैं कि भ्रष्ट लोक सेवकों को न्याय के कटघरे में लाया जाए और उन्हें दोषी ठहराया जाए, ताकि प्रशासन और शासन भ्रष्टाचार के प्रदूषण से मुक्त हो सके।

पीठ ने स्वतंत्र सिंह बनाम हरियाणा राज्य (1997) मामले में शीर्ष अदालत के अवलोकन को दोहराया कि भ्रष्टाचार, कैंसरयुक्त लिम्फ नोड्स की तरह सार्वजनिक सेवा में दक्षता के सामाजिक ताने-बाने, राजनीतिक शरीर की महत्वपूर्ण नसों को नष्ट कर रहा है और ईमानदार अधिकारियों का मनोबल गिरा रहा है।

पीठ ने कहा कि सार्वजनिक सेवा में दक्षता में तभी सुधार होगा, जब लोक सेवक अपना पूरा ध्यान लगाएगा और कर्तव्यनिष्ठा, सच्चाई, ईमानदारी से कर्तव्य निभाएगा और अपने पद के कर्तव्यों के प्रदर्शन के लिए खुद को समर्पित करेगा।

पीठ ने मध्यप्रदेश सरकार बनाम शंभु दयाल (2006) के मामले का भी हवाला दिया और कहा कि लोक सेवकों द्वारा भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या बन गया है और यह बड़े पैमाने पर राष्ट्र निर्माण गतिविधियों को धीमा कर देता है, जिसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ता है।

शीर्ष अदालत ने 71 पन्नों के अपने फैसले में कहा कि अभियुक्तों के दोष को घर लाने के लिए अभियोजन पक्ष को पहले अवैध संतुष्टि की मांग और बाद में स्वीकृति को तथ्य के रूप में साबित करना होगा। इस तथ्य को या तो प्रत्यक्ष साक्ष्य द्वारा साबित किया जा सकता है जो मौखिक साक्ष्य या दस्तावेजी साक्ष्य की प्रकृति में हो सकता है।

पांच-न्यायाधीशों की खंडपीठ का फैसला 2019 में तीन-न्यायाधीशों की पीठ के संदर्भ में आया, जिसने शीर्ष अदालत के पिछले फैसले में कहा था कि शिकायतकर्ता की मृत्यु के कारण अवैध संतुष्टि की मांग को साबित करने में विफलता घातक होगी। अभियोजन मामले और अभियुक्त से रिश्वत की राशि की वसूली के लिए उसकी दोषसिद्धि नहीं होगी।

एसजीके/एएनएम

Share This Article
Sabal Singh Bhati is CEO and chief editor of Niharika Times