नई दिल्ली, 8 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पटना हाईकोर्ट से कहा कि वह कुछ दिनों के भीतर पॉक्सो मामलों का फैसला करने वाले बिहार के एक निलंबित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के खिलाफ सभी अनुशासनात्मक कार्यवाही वापस लें।
जस्टिस यू. यू. ललित और जस्टिस रवींद्र भट की पीठ ने उच्च न्यायालय का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील से कहा, हमारी एक सीधी से सलाह है कि सब कुछ छोड़ दें। यदि आप नहीं चाहते हैं, तो हम इसमें सीधे तौर पर जाएंगे।
यह नोट किया गया कि जब भ्रष्टाचार और दुर्भावना के आरोप नहीं हों, तभी अनुशासनात्मक कार्रवाई उचित है। उच्च न्यायालय का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने कहा कि वह उच्च न्यायालय को सूचित करेंगे।
पीठ ने कहा कि न्यायाधीश के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अति उत्साह नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह अन्य न्यायिक अधिकारियों को एक बुरा संदेश भेजेगा, जो अपने कर्तव्यों का कुशलता से पालन कर रहे हैं। अदालत ने आगे कहा कि न्यायिक अधिकारी के खिलाफ कुछ भी होता है तो उच्च न्यायालय में भी उसका एक प्रतिबिंब होता है।
इसने कहा कि न्यायाधीश को 5 अगस्त, 2022 को ज्ञापन प्राप्त होने के बाद 10 दिनों के भीतर बचाव में अपना लिखित बयान प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था, जिसमें संलग्नक (इनक्लोजर) के साथ आरोप के लेख थे, जिसे याचिकाकर्ता न्यायाधीश को दिया गया था।
याचिकाकर्ता न्यायाधीश की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि उनका मुवक्किल बचाव पक्ष का बयान देने को तैयार है। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय को निलंबित न्यायाधीश के लिखित बयान पर विचार करना चाहिए।
दलीलें सुनने के बाद, शीर्ष अदालत ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 18 अगस्त को निर्धारित किया। उच्च न्यायालय के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता की लिखित प्रतिक्रिया सहित पूरे मामले पर विचार करने के बाद एक उचित निर्णय दो दिनों के भीतर लिया जाएगा।
शीर्ष अदालत ने 29 जुलाई को शशिकांत राय के इस दावे पर कि उनके निलंबन आदेश और उनके खिलाफ लंबित अनुशासनात्मक कार्यवाही में कोई कारण दर्ज नहीं किया गया है, पर महापंजीयक (रजिस्ट्रार जनरल) और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया। राय ने अधिवक्ता नितिन सलूजा के माध्यम से शीर्ष अदालत का रुख किया था।
अररिया में एक अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश (एडीजे) राय ने पटना उच्च न्यायालय द्वारा जारी 8 फरवरी के नॉन-स्पीकिंग निलंबन आदेश और उसमें उल्लिखित अनुशासनात्मक कार्यवाही को दुर्भावनापूर्ण, अवैध और मनमाना बताते हुए रद्द करने की मांग की है।
पिछली सुनवाई में, शीर्ष अदालत ने देखा कि एक न्यायाधीश का ²ष्टिकोण – जिसने एक दोषी को चार कार्य दिवसों के भीतर मृत्युदंड की सजा सुनाई और एक पॉक्सो मामले का फैसला किया और एक कार्य दिवस के भीतर दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई – को सराहनीय नहीं कहा जा सकता।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो मामले में एक दोषी को महज चार दिनों के भीतर पूरे किए गए मुकदमे में मौत की सजा देने और एक ही दिन में पूरे हुए मुकदमे में एक अन्य पोक्सो दोषी को उम्रकैद की सजा सुनाए जाने पर आपत्ति जताई थी। जस्टिस ललित और जस्टिस भट की पीठ ने बिहार के निलंबित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा दायर रिट याचिका पर विचार करते आपत्ति जताई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि पटना हाईकोर्ट ने पॉक्सो मामलों में कुछ दिनों के भीतर फैसला करने पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई है।
आईएएनएस
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