पटना, 25 दिसंबर ()। बिहार के सारण जिले में जहरीली शराब कांड में करीब 73 लोगों की मौत हुई। इसी दौरान महागठबंधन और एकमात्र विपक्षी दल भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। इसी दौरान बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने जो पिएगा वो मरेगा टिप्पणी की, अब उन्हें ये टिप्पणी परेशान कर सकती है।
राज्य में सात दलों की सरकार जहां यह दावा कर रही है कि भाजपा अपने राजनीतिक हितों के लिए संवैधानिक संस्थाओं का इस्तेमाल कर रही है, वहीं भगवा दल ने नीतीश कुमार सरकार को आम आदमी के प्रति असंवेदनशील करार दिया है। राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए भाजपा के ओबीसी विंग के राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा कि जहरीली त्रासदी नीतीश सरकार की स्पष्ट विफलता है और आम लोग इसके शिकार हैं। मृतकों में से कई अकेले कमाने वाले थे। शराब माफियाओं के अवैध कारोबार को रोकने में राज्य सरकारी नाकाम रही है।
निखिल आनंद ने कहा कि जहरीली शराब कांड में मारे गए लोगों के परिवारों पर भुखमरी का खतरा मंडरा रहा है। ऊपर से राज्य के मुख्यमंत्री कह रहे हैं जो पिएगा वो मरेगा। राज्य सरकार ने पीड़ितों के परिवारों को मुआवजा देने से इनकार कर दिया। उन्होंने पूछा कि उन परिवारों का क्या दोष है, जिन्होंने अपने कमाने वाले को खो दिए हैं।
आनंद ने आगे कहा कि राज्य सरकार दावा कर रही है कि जहरीली शराब के कारण केवल 42 मौतें हुईं, जिसका मतलब है कि अधिकारियों ने केवल 42 शवों का पोस्टमार्टम किया है, जबकि स्थानीय गांवों ने दावा किया कि 200 से अधिक लोगों ने इस त्रासदी में अपनी जान गंवाई और उनका अंतिम संस्कार किया गया।
उन पीड़ितों का क्या हुआ जिन्हें राज्य सरकार ने मान्यता नहीं दी? कई पीड़ितों के पास शवों का दाह संस्कार करने के लिए पैसे नहीं थे। राज्य सरकार जो कबीर अंत्येष्टि योजना के तहत शवों का अंतिम संस्कार नहीं कर पाने वाले परिवारों को 3000 रुपये देती थी, वह भी जहरीली शराब त्रासदी के पीड़ितों के परिवारों को नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार सरकार मरने वालों की संख्या छिपा रही है। यह मानवाधिकारों का स्पष्ट हनन है और इसलिए एनएचआरसी मृतकों की वास्तविक संख्या का पता लगाने के लिए घटना की जांच कर रहा है।
सीएम नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और महागठबंधन के अन्य नेता आरोप लगा रहे हैं कि एनएचआरसी की टीम गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक क्यों नहीं गई। अन्य राज्यों में जहरीली शराब की घटनाओं की तुलना बिहार से करना उचित नहीं है।
सूत्रों ने कहा कि एनएचआरसी की टीमों ने उन मृतकों की सूची तैयार की है जो अपने-अपने परिवारों के एकमात्र रोटी कमाने वाले थे।
जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिषेक झा ने से कहा कि देश में मानवाधिकारों के हनन की रक्षा के लिए एनएचआरसी का बुनियादी सिद्धांत है। बिहार में मानवाधिकारों का ऐसा कोई हनन नहीं हुआ है, इसलिए यहां इसकी जांच की जरूरत नहीं है।
उन्होंने कहा, भाजपा ने पिछले आठ वर्षो में अपने स्वार्थो के लिए संवैधानिक निकायों का इस्तेमाल किया है। यह उन अन्य राज्यों में क्यों नहीं गई, जहां अतीत में बड़े पैमाने पर त्रासदी हुई थी। यह बिहार में महागठबंधन सरकार के खिलाफ माहौल बनाने और तैयारी करने का एक प्रयास है।
राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने से कहा कि हर कोई जानता है कि कैसे भाजपा अपने राजनीतिक हितों के लिए संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करती है। नरेंद्र मोदी सरकार राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए सीबीआई, ईडी, आयकर और अन्य अधिकारियों का इस्तेमाल करती रही है।
बिहार सरकार को बदनाम करने के लिए उसी तर्ज पर एनएचआरसी की जांच चल रही है। यह घोषित करने की एक बड़ी योजना हो सकती है कि बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने से कहा कि वह एनएचआरसी की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद ही इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी करेंगे।
नीतीश कुमार सरकार शराबबंदी के नियमों का उल्लंघन करने वालों को मुआवजा नहीं देने पर अड़ी हुई है। इमेज बानाने के कोशिश के रूप में बीते कुछ दिनों से तेजस्वी यादव रैन बसेरों में या सड़कों पर सो रहे लोगों को कंबल बांटते देखे जा सकते हैं।
एडीजीपी मुख्यालय जितेंद्र सिंह गंगवार ने कहा कि जांच के दौरान पता चला है कि शराब बनाने में एक खास तरह के केमिकल का इस्तेमाल किया गया था। हमारी जांच टीमों ने नमूने एकत्र कर लिए हैं और मृतक के विसरा रिपोर्ट में मिले रसायन से इसका मिलान किया जाएगा। तब हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि उस रसायन के कारण शराब जहरीली हो गई। उन्होंने कहा कि हमने 153 लोगों को गिरफ्तार किया है जो जिले में शराब बनाने या बेचने में शामिल थे।
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