बाड़मेर में 65 से 68 साल के विद्यार्थी कक्षा में दरी पट्टी पर पालती मारकर बैठे हैं और सामने उनके 85 से 90 साल के वही शिक्षक हैं जिन्होंने 1974-75 में, यानी 50 साल पहले, उन्हें पढ़ाया था। यह बुजुर्गों की कक्षा जरूर थी, लेकिन ये बुजुर्ग अपने बचपने को जी रहे थे।