जयपुर। बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक विजयादशमी (दशहरा) गुरुवार को मनाई जाएगी। इस अवसर पर शहर में उत्साह और उल्लास देखने को मिल रहा है। विभिन्न स्थानों पर रावण के पुतले बनाने का कार्य तेजी से चल रहा है। रावण बनाने वाले कारीगरों और विक्रेताओं को इस बार दशहरे से काफी उम्मीदें हैं। आदर्श नगर, सोडाला, पुरानी चुंगी, अजमेर रोड, बीटू बाईपास रोड, शास्त्री नगर, मानसरोवर, प्रतापनगर, राजापार्क समेत कई जगहों पर रावण और कुंभकरण के पुतले दिखाई देने लगे हैं। इन पुतलों को बनाने में दो सौ से तीन सौ खानाबदोश परिवार जुटे हुए हैं।
मानसरोवर मेट्रो स्टेशन के पास सड़क किनारे रहने वाले ये खानाबदोश विजयादशमी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। उनके मन में रावण जलाने का नहीं, बल्कि खूबसूरत रावण बनाने का उत्साह है। बिना घर-बार वाले ये खानाबदोश दशहरे पर हजारों रुपए का रावण बनाकर लाखों में बेच देते हैं, इसलिए वे सुबह उठते ही उसकी पूजा करते हैं। विजयादशमी में अब केवल तीन से चार दिन बचे हैं, जिसके चलते रावण मंडियां लग गई हैं। ये परिवार अपने अन्नदाता के दहन के लिए पूरे एक साल का इंतजार करते हैं।
रावण मंडी में सैकड़ों परिवार पिछले दो महीनों से पुतले तैयार करने में लगे हैं। मौसम की मार ने भी रावण पर असर डाला है। बारिश के कारण बांस, लकड़ी, रस्सी, सूत, रंग आदि महंगे हो गए हैं, जिससे इस बार रावण और कुंभकरण के पुतले पिछले सालों की तुलना में आधे भी तैयार नहीं हो पाए हैं। पिछले साल यहां 8 से 10 हजार पुतले तैयार होते थे, जबकि इस साल उनकी संख्या घटकर आधी रह गई है। रावण की कीमतें भी बढ़ गई हैं, जिससे इस बार रावण मंडी में ऑर्डर कम हो गए हैं।
रावण मंडी में पुतले 200 रुपए से लेकर एक लाख रुपए तक बिक रहे हैं। छोटे पुतले 200 रुपए से लेकर 20 हजार तक की कीमत में मिल रहे हैं। कारीगर ऑर्डर के अनुसार भी पुतले तैयार कर रहे हैं। जयपुर के अलावा मुंबई, गंगापुर, कोटा जैसे शहरों में भी यहां से रावण भेजे जा रहे हैं। रावण बनाने के लिए मुल्तानी मिट्टी और केमिकल का उपयोग किया जा रहा है, जिससे पुतले लंबे समय तक जलते हैं। मानसरोवर मेट्रो स्टेशन के पास रावण बना रहे भगवान दास का कहना है कि वे रावण बेचकर अच्छे पैसे कमा लेते हैं।
मोहल्लों में दशहरा दहन की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। पहले गिने-चुने स्थानों पर रावण दहन होता था, लेकिन अब मोहल्लों और कॉलोनियों में विकास समितियां मैदानों में दहन की तैयारियों में जुटी हैं। बच्चों में भी इस पर्व को लेकर उत्साह है। खानाबदोशों के यहां रावण के पुतले खरीदने वालों की भीड़ जुटने लगी है। कई लोग अपनी पसंद के पुतले बनवा रहे हैं।
रावण बनाने के लिए जो सामान खरीदा जाता है, उस पर जीएसटी देनी पड़ती है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की ओर से कई चीजों पर जीएसटी कम की गई है, जिससे कच्चे माल पर कुछ असर हो सकता है। कारीगर शंकर ने बताया कि पुतला बनाने के लिए जो माल बाजार से खरीदा जाता है, उसे नकद में लेना पड़ता है, जिसके लिए मुखिया की गारंटी पर ब्याज पर पैसा लेकर माल लाना पड़ता है। कांटा चौराया मानसरोवर मेट्रो स्टेशन के पास हर साइज के रावण उपलब्ध हैं। छोटे रावण की कीमत 400 रुपए से शुरू होकर 700 रुपए तक है।
वहीं 70 फीट से लेकर 120 फीट के रावण की कीमत 50 हजार से लेकर 80 हजार रुपए तक है। भोला राम ने बताया कि मेहनत के अनुसार उन्हें कला का सही मूल्य नहीं मिल पाता। आज भी हस्थ कारीगर मच्छरों के बीच में जीवनयापन कर रहे हैं। स्थाई पता न होने के कारण उनके पास बीपीएल कार्ड या राशन कार्ड नहीं है। कई बार बिना मानसून की बारिश के सारा माल खराब हो जाता है। बचे हुए रावण को जलाना पड़ता है।
बह्मा ने बताया कि एक सीजन में करीब 200 से 300 रावण बेच देते हैं, लेकिन कई छोटे-बड़े रावण बच जाते हैं, जिन्हें आग में होम कर दिया जाता है। पप्पू गुजराती ने बताया कि वे अपने परिवार के साथ मिलकर कई वर्षों से पुतले बनाने का काम कर रहे हैं। मेले में दहन होने वाला रावण का पुतला जितना ऊंचा होता है, उतना ही महंगा होता है। दशहरे से एक महीने पहले ही रावण के पुतले बनाने के ऑर्डर मिलना शुरू हो जाते हैं।


