नई दिल्ली। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मंगलवार को अनिल अंबानी समूह की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर के खिलाफ फेमा जांच के तहत महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में छापेमारी की। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मुंबई और इंदौर के महू में कम से कम छह परिसरों पर छापे मारे गए। अधिकारियों ने बताया कि यह तलाशी विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के तहत रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर के खिलाफ की जा रही जांच का हिस्सा है। यह जांच विदेशों में अवैध तरीके से धन भेजने के आरोपों पर हो रही है।
ईडी पहले से ही धन शोधन के आपराधिक प्रावधानों के तहत रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर (आर इंफ्रा) समेत समूह की कंपनियों की ओर से 17,000 करोड़ रुपये से अधिक की कथित वित्तीय अनियमितताओं और सामूहिक ऋण “डायवर्जन” की जांच कर रहा है। पीएमएलए के तहत एजेंसी की कार्रवाई सेबी की एक रिपोर्ट के बाद शुरू हुई। इसमें में आरोप लगाया गया था कि आर इंफ्रा ने सीएलई नामक कंपनी के जरिए रिलायंस समूह की कंपनियों को अंतर-कॉर्पोरेट जमा (आईसीडी) के रूप में धनराशि “डायवर्ट” की।
इस मामले में यह आरोप लगे कि आर इन्फ्रा ने शेयरधारकों और ऑडिटर्स के अनुमोदन से बचने के लिए सीएलई को खुद से जुड़ा हुआ नहीं बताया। उधर, रिलायंस समूह ने इस मामले में किसी भी गड़बड़ी से इनकार किया था और एक बयान में कहा था कि 10,000 करोड़ रुपये की राशि को किसी अज्ञात पक्ष को हस्तांतरित करने का आरोप 10 साल पुराना मामला है। कंपनी ने अपने वित्तीय विवरणों में कहा था कि उसका जोखिम केवल 6,500 करोड़ रुपये के आसपास था।
रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने करीब छह महीने पहले 9 फरवरी, 2025 को इस मामले का सार्वजनिक रूप से खुलासा किया था। कंपनी ने कहा, “सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की ओर से शुरू की गई अनिवार्य मध्यस्थता कार्यवाही और माननीय बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष दायर मध्यस्थता अवार्ड के जरिए रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर 6,500 करोड़ रुपये के अपने 100 प्रतिशत ऋण की वसूली के लिए एक समझौते पर पहुंची।” बयान के अनुसार, अंबानी तीन साल से अधिक समय (मार्च 2022) से आर इंफ्रा के बोर्ड में नहीं थे।