कोटा। विश्व शिक्षक दिवस पर शहर के कुछ शिक्षक विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करने के लिए हर संभव प्रयास कर उनके जीवन को संवारने में जुटे हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान माता-पिता और ईश्वर से भी ऊँचा है। मनुष्य को जीवन जीने की राह गुरु के ज्ञान से ही मिलती है। गुरु के बिना जीवन अंधकारमय हो जाता है। शहर में कुछ शिक्षक कच्ची बस्ती में रहने वाले बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। ये शिक्षक केवल पढ़ाई नहीं कराते, बल्कि बच्चों को जीवन जीने का सही तरीका भी सिखाते हैं।
कच्ची बस्ती के बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाने वाले महेंद्र सिंह, जो राजभंवर संस्था के संचालक हैं, बताते हैं कि उनके पिता जोधपुर में बस कंडक्टर थे और उन्होंने बस में बैठने वाले बच्चों की आर्थिक मदद की। 2012 से उन्होंने कच्ची बस्ती के अभावग्रस्त बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने की शुरुआत की। वर्तमान में शहर में तीन से चार जगहों पर नि:शुल्क शिक्षा केंद्र चल रहे हैं। बच्चों को नि:शुल्क पाठ्य सामग्री दी जाती है और उनके माता-पिता को शिक्षण गतिविधियों में शामिल किया जाता है।
महेंद्र सिंह का कहना है कि उनके पिता ने कहा था कि हमें ईश्वर ने सक्षम बनाया है, इसलिए हमें कुछ न कुछ देने का भाव होना चाहिए। उनका लक्ष्य एक लाख बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाना है। रंगबाड़ी सर्किल के पास अक्षय वैष्णव की टीम पिछले 6 वर्षों से कमजोर और गरीब बच्चों को नि:शुल्क पढ़ा रही है। अक्षय ने बताया कि जब उन्होंने देखा कि प्रतिभाशाली बच्चे गरीबी के कारण महंगी कोचिंग नहीं ले पा रहे हैं, तो उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर नि:शुल्क कोचिंग की शुरुआत की।
प्रारंभ में 9वीं और 10वीं के 300 विद्यार्थियों को पढ़ाने का संकल्प लिया गया था। अब तक संस्था ने लगभग 2000 विद्यार्थियों को नि:शुल्क शिक्षा दी है। इसके अलावा, संस्था गाड़िया लुहार बस्तियों में जाकर बच्चों को पढ़ाने का कार्य कर रही है। संस्था के संचालक को दो बार जिला प्रशासन द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। उनके विद्यार्थी विभिन्न उच्च संस्थानों में नौकरी कर रहे हैं। राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय सकतपुरा में पिछले साल दो स्मार्ट क्लास रूम बनाए गए हैं। कक्षा एक से पांच तक के बच्चों को एलईडी पर शिक्षण कार्य किया जा रहा है।
शिक्षक रामेश्वर नावर और जगमोनह बच्चों को शिक्षा देने का कार्य कर रहे हैं। स्कूल की प्रिंसिपल अंजू सक्सेना ने बताया कि अध्यापकों के अभाव के बावजूद बच्चों को कलात्मक और रचनात्मक शिक्षा दी जा रही है।