डिजिटल युग में लड़कियों की सुरक्षा पर चिंता जताई सीजेआई ने

Sabal SIngh Bhati
By Sabal SIngh Bhati - Editor

नई दिल्ली। चीफ जस्टिस (सीजेआई) बीआर गवई ने डिजिटल युग में लड़कियों की सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन उत्पीड़न, साइबर हमलों, डिजिटल माध्यम से पीछा करने, व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग और डीपफेक तस्वीरों जैसी समस्याओं के कारण लड़कियां गंभीर रूप से असुरक्षित हैं। उन्होंने कानून और प्रवर्तन एजेंसियों तथा नीति निर्धारकों के लिए विशेष कानून और प्रशिक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया।

भारत में ‘एक सुरक्षित और सक्षम वातावरण की ओर’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय वार्षिक हितधारक परामर्श बैठक को संबोधित करते हुए, यह कार्यक्रम सुप्रीम कोर्ट की किशोर न्याय समिति (जेजेसी) के तत्वावधान में यूनिसेफ इंडिया के सहयोग से आयोजित किया गया था। उन्होंने कहा कि संविधान और कानूनी संरक्षण के बावजूद देश की कई बालिकाएं अब भी दुर्भाग्यवश उनके मौलिक अधिकारों और जीवित रहने के लिए आवश्यक बुनियादी जरूरतों से वंचित हैं।

यह असुरक्षा उन्हें यौन शोषण, उत्पीड़न और अन्य हानिकारक प्रथाओं जैसे कि महिलाओं के शरीर के अंगों को चोट पहुंचाना, कुपोषण, लिंग का चयन कर गर्भपात, तस्करी और उनकी मर्जी के खिलाफ बाल विवाह के अधिक जोखिम में डाल देती है। जस्टिस गवई ने आगे कहा, उनकी (बालिकाओं) सुरक्षा केवल उनके शरीर की रक्षा करना नहीं है, बल्कि उनकी आत्मा को आजाद करना भी है। एक ऐसा समाज बनाना है जहां वह गरिमा के साथ सिर ऊंचा करके खड़ी हो सके और जहां उसकी आकांक्षाएं शिक्षा और समानता से पोषित हों…

हमें उन गहरी जड़ें जमा चुकी पितृसत्तात्मक रीति-रिवाजों का सामना करना होगा और उन्हें दूर करना होगा, जो लड़कियों को उनका सही स्थान देने से रोकते हैं। रविंद्रनाथ टैगोर की कविता ‘व्हेयर द माइंड इज विदाउट फियर’ को याद करते हुए सीजेआई ने कहा कि यह कविता उस भावना को पूरी तरह से व्यक्त करती है, जिसे बालिका की सुरक्षा के लिए हासिल करना जरूरी है। उन्होंने कहा, यह सपना अधूरा रहेगा, जब तक हमारे देश की कोई भी लड़की डर के साए में रहे।

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