जंगली जानवरों में इंसानी बीमारियों का बढ़ता खतरा

Tina Chouhan

जयपुर डेस्क। वनों की गहराइयों में दहाड़ने वाले शेर और पेड़ों पर फुर्ती से छलांग लगाने वाले तेंदुए आज एक नए खतरे से जूझ रहे हैं – इंसानी बीमारियां। हाल ही में सामने आए कई मामलों ने वन्यजीव विशेषज्ञों और पर्यावरण वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। अब केवल इंसान ही नहीं, बल्कि जंगली जानवर भी मिर्गी, डायबिटीज, मोटापा और तनाव जैसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। चौंकाने वाले मामले मध्य प्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क में हाल ही में एक शेर को बार-बार दौरे पड़ने के बाद जब जांच की गई तो पता चला कि उसे मिर्गी है।

वहीं, महाराष्ट्र के ताडोबा टाइगर रिजर्व में पकड़े गए एक तेंदुए में डायबिटीज की पुष्टि हुई। हाल ही यूपी में गोरखपुर के चिड़ियाघर से कुछ चौंकाने वाली खबरें आईं। यहां जंगली जानवर कैंसर, डायबिटीज और मोतियाबिंद जैसी बीमारियों से पीड़ित पाए गए। गोरखपुर के चिड़ियाघर में एक तेंदुए की मौत कैंसर की वजह से हुई। एक शेर को मिर्गी का दौरा पड़ गया। जबकि एक बाघिन ने मोतियाबिंद के चलते 90 फीसदी तक अपनी आंखों की रोशनी गंवा दी। एक दूसरे तेंदुए की जांच की गई तो पता चला कि उसे डायबिटीज है।

ये मामले वन्यजीव स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के लिए हैरान करने वाले हैं, क्योंकि अब तक इन बीमारियों को केवल मनुष्यों से जोड़कर देखा जाता था। कई रिसर्च में यह पहले भी सामने आ चुका है कि जंगली जानवरों को कैंसर, डायबिटिज, कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याएं होती हैं। अमेरिका के एक एक्वेरियम में इसी साल फरवरी में एक क्लाउडेड लैपर्ड की मौत डायबिटिज की वजह से हुई। जंगली जानवरों को टीबी, हार्ट अटैक भी होते हैं। भालुओं में कई बार हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या देखने को मिली है।

कारण: बदलता परिवेश और मानव हस्तक्षेप विशेषज्ञों का मानना है कि इंसानी गतिविधियों और पर्यावरणीय बदलावों ने जंगली जानवरों के जीवनचक्र को गहराई से प्रभावित किया है। शहरीकरण के बढ़ते दायरे, प्रदूषण, और भोजन के स्रोतों में बदलाव के कारण जानवरों की प्राकृतिक दिनचर्या बाधित हो रही है। डॉ. अनिल शर्मा, वन्यजीव चिकित्सक, बताते हैं कि जंगलों में अब पहले जैसी शांति और भोजन की विविधता नहीं रही। इंसानी बस्तियों के नजदीक रहने वाले जानवर अक्सर कचरे या इंसानों द्वारा फेंके गए खाने पर निर्भर हो जाते हैं, जिससे उन्हें डायबिटीज या मोटापा जैसी बीमारियां हो रही हैं।

तनाव भी बड़ा कारण मिर्गी या न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के पीछे तनाव को भी प्रमुख कारण माना जा रहा है। लगातार बदलता निवास स्थान, शिकार में कमी और इंसानों से बढ़ते संघर्ष के कारण जानवरों में तनाव बढ़ रहा है। कई बार शावकों को बचाने में असमर्थ रहने वाले या लगातार शिकार के प्रयासों से घिरे बड़े बिल्लियों में व्यवहारिक परिवर्तन देखे गए हैं- जैसे असामान्य आक्रोश, सुस्ती या अचानक दौरे पड़ना।

किस वजह से इंसानी बीमारियों के शिकार हो रहे जंगली जानवर विशेषज्ञों की मानें तो इस तरह की बीमारियों का शिकार अधिकतर वही जानवर हो रहे हैं, जिन्हें चिड़ियाघर या एक निश्चित बाड़े में रखा गया है। यहां उन्हें प्राकृतिक खाना नहीं मिल रहा बल्कि इंसानों द्वारा तैयार डाइट दी जा रही है। जंगल में वो तभी खाते हैं, जब भूख लगती है। लेकिन कैद में ऐसा नहीं है, जब मालिक खाना देता है तभी खाना होता है। जंगल में खाने के लिए उन्हें शिकार करना पड़ता है, लेकिन यहां बिना कुछ किए ही खाना मिल रहा है।

चिड़ियाघर में उनके पास घूमने-फिरने के लिए भी ज्यादा जगह नहीं होती, जिसके चलते धीरे-धीरे बीमारियां घर करने लगती हैं। जंगली जानवरों में डायबिटिज के कारण जंगली जानवरों में डायबिटीज जैसे मामलों पर enviroliteracy की एक रिपोर्ट में कई कारण बताए गए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार जंगल और चिड़ियाघर में रहने वाले किसी भी जंगली जानवर को शुगर हो सकती है। बस जंगली जानवरों के नियमित टेस्ट नहीं हो पाते हैं। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। डायबिटिज का ज्यादा खतरा अपनी फुर्ती के लिए मशहूर तेंदुओं में भी अब डायबिटीज की समस्या देखने को आ रही है।

हालांकि बंदर, सुअर, भेड़, मगरमच्छ, हाथी और गिलहरी में डायबिटीज का खतरा ज्यादा रहता है। हैरानी की बात यह है कि भारी-भरकम और शहद खाना पसंद करने वाले भालू के शरीर में ऐसे प्रोटीन होते हैं, जो उसे इस बीमारी से बचाकर रखने में काफी हद तक सफल होते हैं। समाधान की दिशा में कदम विशेषज्ञ यह भी सुझाव दे रहे हैं कि जंगलों में इंसानी हस्तक्षेप को कम किया जाए, भोजन श्रृंखला को प्राकृतिक रूप में बहाल किया जाए, और संरक्षण केंद्रों में जानवरों के लिए स्ट्रेस-फ्री एनक्लोजर बनाए जाएं।

इसके अलावा, पर्यटन और सफारी गतिविधियों को भी सीमित करने की मांग उठ रही है।

Share This Article