पीएम मोदी ने उत्तराखंड की जयंती पर पहाड़ी संस्कृति का सम्मान किया

vikram singh Bhati

देहरादून: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को उत्तराखंड के 25वें स्थापना दिवस (रजत जयंती) के मुख्य कार्यक्रम को संबोधित किया। इस अवसर पर उनका अंदाज पूरी तरह से ‘पहाड़ी’ रंग में रंगा नजर आया। उन्होंने न सिर्फ सिर पर पारंपरिक पहाड़ी टोपी पहनी, बल्कि अपने भाषण में कई बार गढ़वाली और कुमाऊंनी बोलियों का भी प्रयोग किया, जो उत्तराखंड के साथ उनके गहरे लगाव को दर्शाता है।

यह पहला मौका नहीं है जब पीएम मोदी ने उत्तराखंड के कार्यक्रमों में स्थानीय भाषा का इस्तेमाल किया हो, लेकिन इस बार उन्होंने जितनी सहजता और विस्तार से गढ़वाली-कुमाऊंनी वाक्यों का प्रयोग किया, उतना पहले कभी नहीं देखा गया। इस वजह से कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने उनके साथ एक विशेष जुड़ाव महसूस किया। गढ़वाली-कुमाऊंनी में अभिवादन और संवाद प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में भाषण की शुरुआत ही स्थानीय बोली में की। उन्होंने कहा: “देवभूमि उत्तराखंड का मेरा भै बंधु, दीदी, भुलियों, दाना सयानो, आप सबू तई म्यारू नमस्कार।

पैलाग, सैंवा सौंली।” — नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री भाषण के बीच में भी उन्होंने विकास का जिक्र करते हुए फिर गढ़वाली में कहा, “पैली पहाडू कू चढ़ाई, विकास की बाट कैल रोक दी छै। अब वखि बटि नई बाट खुलण लग ली।” उनके इस अंदाज ने लोगों को और भी रोमांचित कर दिया। हरेला से लेकर बटर फेस्टिवल तक का जिक्र अपने संबोधन में पीएम मोदी ने उत्तराखंड की समृद्ध लोक परंपराओं और संस्कृति को भी प्रमुखता से याद किया। उन्होंने राज्य के प्रमुख लोक पर्वों जैसे हरेला, फुलदेई और भिटोली का उल्लेख किया।

इसके साथ ही उन्होंने नंदादेवी यात्रा, जौलजीबी और देवीधुरा मेले जैसे महत्वपूर्ण आयोजनों का भी जिक्र किया। इतना ही नहीं, उन्होंने उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल में होने वाले प्रसिद्ध बटर फेस्टिवल (अंढूडी उत्सव) को भी अपने भाषण में शामिल कर यह संदेश दिया कि वह उत्तराखंड की हर छोटी-बड़ी सांस्कृतिक विरासत से परिचित हैं। उनका यह अंदाज राज्य की संस्कृति के प्रति उनके सम्मान को दिखाता है।

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Vikram Singh Bhati is author of Niharika Times web portal