उत्पन्ना एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का सही तरीका

vikram singh Bhati

उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi 2025) का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। सभी एकादशी का अपना महत्व होता है, लेकिन इस दिन का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि इसी दिन देवी एकादशी प्रकट हुई थीं। इस दिन को अन्य एकादशी तिथियों के व्रत की शुरुआत माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी का व्रत 15 नवंबर को रखा जाएगा। इस दिन श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। पूजा विधि जानें और भगवान को भोग में क्या अर्पित करें।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एकादशी देवी का जन्म भगवान विष्णु के शरीर से हुआ था। उन्होंने मुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, जिसने भगवान विष्णु पर योगनिद्रा के दौरान हमला करने की कोशिश की थी। एकादशी देवी ने उसे रोका और भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि इस तिथि पर व्रत रखने वाले के पाप नष्ट होंगे और वह मोक्ष प्राप्त करेगा। पूजा कैसे करें: सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पीले रंग के वस्त्र पहनें। अपने हाथों में जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें।

पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें और पंचामृत स्नान करवाएं। फिर पीले रंग के वस्त्र, चंदन और पीले पुष्प अर्पित करें। एकादशी व्रत की कथा पढ़ें या सुनें। अंत में भगवान विष्णु और एकादशी माता की आरती करें। भोग में तुलसी दल का उपयोग अवश्य करें। गरीबों या ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें। व्रत के दूसरे दिन द्वादशी पर सुबह स्नान के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवा कर शुभ मुहूर्त में अपने व्रत का पारण करें। भगवान का प्रिय भोग एकादशी के दिन भगवान विष्णु को अर्पित करें।

पंचामृत, पीली मिठाई, पीले फल और पंजरी भगवान को प्रिय हैं। इनका भोग लगाने से श्री हरि की कृपा प्राप्त होती है। ध्यान रखें कि तुलसी दल रखना न भूलें, इसके बिना भगवान विष्णु का भोग पूरा नहीं माना जाता।

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Vikram Singh Bhati is author of Niharika Times web portal