नई दिल्ली। डीआरडीओ ने भारत की समुद्री सीमा को अभेद्य बनाने की मुकम्मल तैयारी कर ली है। अब किसी भी शत्रु के लिए समुंदर के रास्ते भारत पर हमला करना या समुद्र में भारत के हितों को नुकसान पहुंचाना नामुमकिन होगा। समुद्र के भीतर बारूदी सुरंग जैसा कोई खतरा होगा तो इसका तुरंत पता लगाया जा सकता है। डीआरडीओ ने समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए नई पीढ़ी के मैन-पोर्टेबल ऑटोनॉमस अंडरवॉटर व्हीकल्स(एमपीएयूवी) विकसित किए हैं।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन डीआरडीओ ने रीयल टाइम बारूदी सुरंग जैसी चीजों का पता लगाने के लिए एमपी-एयूवी डेवलप किए हैं। एयीवीएस में लगे साइड स्कैनर और अंडरवॉटर कैमरे रियल-टाइम में माइंस जैसी खतरनाक चीजों की पहचान करते हैं। अंडरवॉटर एकॉस्टिक कम्युनिकेशन सिस्टम इन्हें मिशन के दौरान आपस में डेटा शेयर करने में सक्षम बनाता है। स्वतंत्र रूप से पहचानेगा लक्ष्यों को रक्षा मंत्रालय ने इसकी जानकारी दी। मंत्रालय ने बताया कि एमपी-एयूवी के डीप लर्निंग आधारित एल्गोरिद्म इस सिस्टम को स्वायत्त रूप से अलग-अलग तरह के लक्ष्यों को पहचानने में सक्षम बनाते हैं।
जिससे ऑपरेटर पर काम का बोझ और मिशन को पूरा करने में लगने वाला समय काफी कम हो जाता है। मंत्रालय के मुताबिक, एमपी-एयूवी का निर्माण डीआरडीओ की विशाखापत्तनम स्थित नौसेना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला (एनएसटीएल) ने किया है। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक इस सिस्टम में मजबूत अंडरवॉटर ध्वनिक संचार तकनीक भी जोड़ी गई है। इससे ये एयूवी आपस में डेटा साझा कर सकता है। ट्रायल में सफल रही तकनीक ट्रायल में यह तकनीक सफल साबित हुई है। हार्बर में हाल ही में फील्ड ट्रायल्स संपन्न किए गए हैं।
ट्रायल में सिस्टम के प्रमुख तकनीकी पैरामीटर और मिशन उद्देश्यों का सफल सत्यापन हुआ। रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और डीआरडीओ के चेयरमैन डॉ. समीर वी. कामत ने पूरी टीम को इस उपलब्धि पर बधाई दी है। उन्होंने कहा कि एमपी-एयूवी का विकास स्मार्ट, नेटवर्क-सक्षम और त्वरित प्रतिक्रिया देने वाली माइन काउंटरमेजर क्षमता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह सिस्टम नौसेना को कम जोखिम और कम लॉजिस्टिक आवश्यकता के साथ उन्नत माइन वॉरफेयर समाधान प्रदान करेगी।


