सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल अधिनियम के कुछ प्रावधानों को रद्द किया

Sabal SIngh Bhati
By Sabal SIngh Bhati - Editor

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों को रद्द कर दिया और कहा कि यह कानून शक्तियों के बंटवारे एवं न्यायिक स्वतंत्रता के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि 2021 के अधिनियम में पहले निरस्त किए गए प्रावधानों को पुन: लागू किया गया तथा मद्रास बार एसोसिएशन (एमबीए) के कई मामलों में न्यायालय द्वारा चिन्हित दोषों को समाप्त नहीं किया गया।

एमबीए द्वारा 2021 में दायर चुनौती को स्वीकार करते हुए शीर्ष अदालत ने माना कि यह अधिनियम आधिकारिक न्यायिक घोषणाओं को विधायी रूप से खारिज करने के समान है और इसे बरकरार नहीं रखा जा सकता है। इसने दोहराया कि पूर्व एमबीए निर्णयों में निर्धारित निर्देश, जैसे न्यायाधिकरण के सदस्यों के लिए न्यूनतम 5 वर्ष का कार्यकाल और कम से कम 10 वर्ष के अनुभव वाले अधिवक्ताओं की पात्रता, तब तक लागू रहेंगे, जब तक कि संसद न्यायिक निर्देशों के अनुपालन में नया कानून नहीं बना लेती।

पीठ ने केंद्र सरकार को चार महीने के अंदर राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग स्थापित करने का भी निर्देश दिया। इसने आगे स्पष्ट किया कि 2021 अधिनियम से पहले हुई नियुक्तियां एमबीए-4 और एमबीए-5 निर्णयों द्वारा शासित होंगी। सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (सीईएसटीएटी) के सदस्यों और अध्यक्ष के लिए भी यही आयु मानदंड लागू होगा।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि 2021 अधिनियम के कुछ प्रावधान, जैसे कि 4 साल का कार्यकाल, न्यूनतम आयु 50 वर्ष की आवश्यकता और खोज-सह-चयन समिति के कामकाज में बदलाव, स्थापित न्यायिक जनादेश के विपरीत हैं और इसलिए संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य हैं।

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