नई दिल्ली। भारत में सड़क हादसे हर साल लाखों लोगों की जान ले रहे हैं। अक्सर कहा जाता है कि तेज रफ्तार, खराब सड़कें हैं या ओवरलोडिंग के कारण ये हादसे हो रहे हैं, लेकिन एम्स ऋषिकेश की नई स्टडी ने कुछ और कारण खोज निकाले हैं, जिस पर गंभीरता से सोचना होगा। इस स्टडी में सामने आया है कि सड़क पर होने वाले आधे से ज्यादा हादसों में शराब जिम्मेदार होती है, वहीं हर पांचवें हादसे में गांजा या ड्रग्स और हर चौथे हादसे में थकान या नींद की झपकी का रोल होता है।
क्या कहते हैं आंकड़े एम्स ऋषिकेश के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती हुए 383 ड्राइवर पीड़ितों पर रिसर्च में सामने आया कि 57.7% ड्राइवर शराब पीकर गाड़ी चला रहे थे। वहीं 18.6% ने गांजा और दूसरी साइकोट्रॉपिक दवाएं ली थीं। इसके अलावा 14.6% ड्राइवर शराब और ड्रग्स दोनों के असर में थे। 21.7% को दिन में जरूरत से ज्यादा नींद की समस्या थी। बाकी 26.6% को थकान और नींद से जुड़ी दिक्कतें थीं। झपकी बनी मौत की वजह हर साल लाखों हादसे ऐसे होते हैं जिनमें ड्राइवर का झपकी लेना एक बड़ी वजह होती है।
परिवहन मंत्रालय के अनुसार 27% एक्सीडेंट ड्राइवर की नींद आने से होते हैं। कई हादसों में ड्राइवर ने खुद माना कि लंबी ड्यूटी और नींद न मिलने से कंट्रोल खो गया। ड्राइवरों ने बातचीत में खुद माना कि ट्रक और बस ड्राइवर कई बार 24-30 घंटे लगातार गाड़ी चलाते हैं, जबकि नियम है कि एक दिन में 8 घंटे से ज्यादा ड्यूटी नहीं होनी चाहिए। देखा जाए तो नियम-कानून तो हैं, लेकिन जमीनी सच अलग है। कैसे हुई स्टडी एम्स के न्यूरोसाइकेट्री विभाग के विशेषज्ञ डॉ.
रवि गुप्ता बताते हैं कि एम्स में हमने हर मरीज का ब्लड और यूरिन टेस्ट किया और वैलिडेट स्लीप टूल से उनकी नींद का पैटर्न समझा। नहीं हो रहा नियमों का पालन? परिवहन नियम कहते हैं कि एक ड्राइवर सप्ताह में 45 घंटे से ज्यादा गाड़ी नहीं चला सकता लेकिन निजी कंपनियां इन नियमों का कितना पालन करती हैं, ये किसी से छुपा नहीं है। सच्चाई ये है कि बस और ट्रक मालिक ड्राइवरों से कम से कम 220 से 250 किलोमीटर प्रतिदिन गाड़ी चलवाते हैं।
सड़क सुरक्षा परिषद के आंकड़े बताते हैं कि 40 से 45% हादसे थकान और नींद की वजह से होते हैं। लंबे रूट्स पर चलने वाले ट्रक ड्राइवर कई बार 30 से 35 घंटे लगातार गाड़ी चलाते हैं। ढाबों पर झपकी ही उनका आराम है, घर जाने का वक्त साल में मुश्किल से 20-25 दिन मिलता है। कई ड्राइवर खुद मानते हैं कि गांजा पीकर नींद कम आती है, इसलिए गाड़ी चला पाते हैं, लेकिन यही जुगाड़ उन्हें एक्सीडेंट की तरफ धकेल देता है।
नशा और नींद का खतरनाक मेल एम्स ऋषिकेश की स्टडी से स्पष्ट है कि सड़क पर उतरने वाला ड्राइवर अगर नशे में है और थका हुआ है तो हादसा लगभग तय है, केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी कई बार कह चुके हैं कि ड्राइवरों की थकान और नींद को लेकर कंपनियों और राज्य सरकारों को जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इन नियमों का सड़कों पर कितना पालन हो रहा, ये सोचने वाली बात है। भारत में हर साल 1.35 लाख मौतें और 50 लाख से ज्यादा चोटें सड़क हादसों से होती हैं।