आंवला नवमी 2025: कार्तिक शुक्ल नवमी पर आंवला वृक्ष की पूजा का महत्व

vikram singh Bhati

आंवला नवमी: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी का पर्व मनाया जाता है। इसे ‘अक्षय नवमी’ के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन से सतयुग का आरंभ हुआ था। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विशेष महत्व है, क्योंकि माना जाता है कि इसमें भगवान विष्णु का वास होता है। यह पर्व देवउठनी एकादशी से ठीक दो दिन पहले आता है। इस दिन किए गए पुण्य कर्मों का फल अक्षय होता है, यानी उसका कभी क्षय नहीं होता।

आंवले के वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है और उसे भगवान विष्णु के साथ-साथ शिवजी का भी आशीर्वाद मिलता है। आंवला नवमी का महत्व शास्त्रों के अनुसार, आंवला नवमी के दिन पवित्र नदी में स्नान, दान और पूजा-पाठ का विशेष फल मिलता है। यदि नदी में स्नान संभव न हो तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।

आंवला वृक्ष को न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि औषधीय गुणों के कारण भी महत्वपूर्ण माना गया है। पौराणिक कथा: जब मां लक्ष्मी ने की आंवले की पूजा एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आईं। उनके मन में भगवान विष्णु और भगवान शिव की एक साथ पूजा करने की इच्छा हुई। तब उन्होंने विचार किया कि ऐसा कौन-सा वृक्ष है जिसमें तुलसी और बेलपत्र, दोनों के गुण एक साथ पाए जाते हों। तब उन्हें आंवले के वृक्ष का ध्यान आया।

माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को ही विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर उसकी विधिवत पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और भोलेनाथ प्रकट हुए। इसके बाद देवी लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाकर दोनों देवों को भोग लगाया और फिर स्वयं प्रसाद ग्रहण किया। माना जाता है कि जिस दिन यह घटना हुई, वह कार्तिक शुक्ल नवमी की तिथि थी। तभी से इस दिन आंवला वृक्ष की पूजा की परंपरा शुरू हुई। इस विधि से करें पूजा आंवला नवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।

इसके बाद पूजा स्थल पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। उन्हें फूल, चंदन, धूप और दीपक अर्पित करें। ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:’ मंत्र का जाप करते हुए पूजा करें। इसके बाद आंवले के वृक्ष के पास जाएं और उसकी जड़ में जल और दूध अर्पित करें। वृक्ष के तने पर कच्चा सूत या मौली लपेटकर परिक्रमा करें। पूजा के बाद परिवार के साथ आंवले के वृक्ष की छाया में बैठकर भोजन करने की भी परंपरा है। ऐसा करने से परिवार पर त्रिदेवों की कृपा बनी रहती है।

शुभ मुहूर्त पंचांग के अनुसार, इस दिन पूजा का शुभ समय सुबह 06:32 AM से सुबह 10:03 AM तक रहेगा

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Vikram Singh Bhati is author of Niharika Times web portal