क्रिकेट प्रेमी टेस्ट क्रिकेट की सबसे बड़ी सीरीज का बेसब्री से इंतजार करते हैं। यह सीरीज ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच होती है जिसे एशेज ट्रॉफी कहा जाता है। क्या आप जानते हैं कि दोनों देशों के बीच खेले जाने वाली टेस्ट सीरीज को एशेज क्यों कहा जाता है? इसका इतिहास क्या है? चलिए आज हम आपको उसके बारे में बता रहे हैं। इसकी पीछे की स्टोरी जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। ब्लाई की कप्तानी में इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया दौरे पर रवाना हुई थी जिसका मकसद था एशेज को वापस लाना।
बता दें कि एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड एशेज सीरीज के लिए मैदान पर उतरने वाले हैं। दोनों देशों के बीच यह टेस्ट सीरीज 21 नवंबर से शुरू हो रही है। दोनों टीमें पर्थ में पहले मुकाबले में आमने-सामने होंगी। ऐसे में सभी के मन में सवाल उठ रहा है कि आखिर इन दोनों देशों के बीच यह लड़ाई इतनी बड़ी क्यों है और इस सीरीज को एशेज क्यों कहा जा रहा है। कैसे शुरू हुई एशेज? दरअसल पूरी कहानी 1882 से शुरू हुई जब ऑस्ट्रेलिया की टीम इंग्लैंड दौरे पर थी।
ओवल में खेले गए टेस्ट मैच में ऑस्ट्रेलिया के हाथों इंग्लैंड को 7 रनों से करीबी हार का सामना करना पड़ा। लेकिन इस हार के बाद ब्रिटिश अखबार में एक हेडलाइन ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। दरअसल स्पोर्टिंग टाइम्स ने अंग्रेजी क्रिकेट को लेकर एक नकली शोक संदेश प्रकाशित किया जिसमें लिखा था “29 अगस्त 1882 को ओवल में देहांत हुए इंग्लिश क्रिकेट की स्नेहपूर्ण स्मृति में। शोकाकुल मित्रों और प्रशंसकों के एक बड़े समूह की ओर से गहरा शोक व्यक्त किया गया। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
ध्यान दें शव का अंतिम संस्कार किया जाएगा और राख ऑस्ट्रेलिया ले जाई जाएगी।” इस शोक संदेश ने पूरे क्रिकेट की दुनिया को हिला दिया। पहली बार ब्रिटिश अखबार ने ही ऑस्ट्रेलिया के हाथों मिली हार के बाद ‘एशेज’ शब्द का इस्तेमाल किया था। जब एशेज लेने वापस लौटे इंग्लैंड के कप्तान कुछ ही हफ्तों बाद इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई और टीम के कप्तान थे ए. पी. ब्लाइ। इस टीम का मकसद था कि ऑस्ट्रेलिया से पिछली हार का बदला लिया जाए।
कप्तान ब्लाइ ने एक संकल्प लिया कि वह एशेज को वापस लेने ऑस्ट्रेलिया जा रहे हैं। ब्लाइ की कप्तानी में इंग्लैंड ने ऑस्ट्रेलिया को दो टेस्ट सीरीज हराई और सीरीज अपने नाम कर ली। ऐसा माना जाता है कि महिलाओं ने बेल्स को जलाकर उसकी राख एक कलश में भरकर ब्लाइ को सौंपी थी और इसी कलश को लेकर ब्लाइ इंग्लैंड लौटे थे। ऐसे शुरू हुई एशेज!
यह कलश ब्लाइ के घर पर लगभग 43 साल तक रखा रहा और ब्लाइ के निधन के बाद इस कलश को मेलबर्न क्रिकेट क्लब को सौंप दिया गया और आज भी यह कलश MCC संग्रहालय में रखा गया है। जब 1990 में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच वास्तविक रूप से एक सीरीज की इच्छा जताई गई तो काफी विचार-विमर्श के बाद ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड ने एक कलश के आकार की वॉटरफोर्ड क्रिस्टल ट्रॉफी बनवाई और इसे एशेज कहा गया। इसमें सच में है राख?
यानी एशेज ट्रॉफी में असली राख है जो कि क्रिकेट बेल्स की है और इसी राख को लेकर ही दोनों देशों के बीच जंग छिड़ी हुई है। 1998-99 में जब ऑस्ट्रेलियाई टीम ने इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीती थी तो पहली बार यह ट्रॉफी ऑस्ट्रेलियाई कप्तान मार्क टेलर को भेंट की गई थी और तभी से एशेज ट्रॉफी ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के लिए प्रत्येक टेस्ट सीरीज के अंत में विजेता कप्तान को सौंपी जाती है।


