हिंदू धर्म में व्रत, त्योहार और दान-धर्म का विशेष महत्व है। विभिन्न तिथियों पर आने वाले व्रत विशेष फल देते हैं। हर व्रत और दान के लिए कोई न कोई तिथि निर्धारित है, जो धार्मिक कैलेंडर के अनुसार देखी जाती है। व्यक्ति कभी भी दान कर सकता है, लेकिन कुछ विशेष तिथियों पर किए गए व्रत और दान का अक्षय फल मिलता है। वहीं कुछ तिथियां ऐसी भी हैं जिनमें किया गया दान व्यर्थ हो जाता है। सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की तिथियों के बारे में जानकारी देते हैं।
जब सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण होता है, तब पूजा नहीं की जा सकती, लेकिन जाप अवश्य करना चाहिए। ग्रहण खत्म होने के बाद दान करना चाहिए, जिसका पुराणों में विशेष महत्व है। व्रत करने की उत्तम तिथि एकादशी मानी गई है, चाहे वह कृष्ण पक्ष में हो या शुक्ल पक्ष में। इसके अलावा चतुर्थी, अष्टमी, पूर्णिमा, षष्ठी, तृतीया, चतुर्दशी और अमावस्या का व्रत भी उत्तम माना गया है। द्वादशी का व्रत सूर्योदय व्यापिनी पर करना चाहिए। दान देने की बात करें तो सूर्य संक्रांति पर इसका विशेष महत्व है।
यह पुण्य काल होता है, जिसमें दान का अधिक महत्व होता है। मकर संक्रांति, तुला संक्रांति और कन्या संक्रांति पर जाप और स्नान दान किया जा सकता है। अमावस्या और पूर्णिमा पर दिया गया दान भी उत्तम फल देता है। ऐसा कहा जाता है कि इन पुण्य दिनों में जो दान करता है, उसका फल कई गुना अधिक मिलता है।


