जयपुर समाचार: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि “विविधताओं को कैसे संभालना है, यह भारत को पूरी दुनिया को सिखाना है, क्योंकि दुनिया के पास वह तंत्र नहीं है जो भारत के पास है.” वे ‘100 वर्ष की संघ यात्रा’ श्रृंखला के तहत जयपुर स्थित कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में आयोजित ‘उद्यमी संवाद – नए क्षितिज की ओर’ कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. यह आयोजन संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में राजस्थान प्रदेश के प्रमुख उद्यमियों के साथ संवाद के रूप में किया गया.
भागवत ने कहा कि शताब्दी वर्ष के कार्यक्रम “कोई उत्सव नहीं बल्कि आत्ममंथन और आगे के चरण की तैयारी हैं.” उन्होंने कहा, “राष्ट्र को परम वैभव संपन्न और विश्वगुरु बनाना किसी एक व्यक्ति, दल या संगठन के बस की बात नहीं है. यह सबका कार्य है, सबको साथ लेकर चलना होगा.” संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वे स्वतंत्रता आंदोलन के सक्रिय क्रांतिकारी थे. “उन्होंने महसूस किया कि समाज में व्याप्त दुर्गुणों को दूर किए बिना भारत मुक्त नहीं हो सकता.
इसीलिए संपूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करने के उद्देश्य से संघ की स्थापना की गई.” भागवत ने स्पष्ट किया कि “संघ किसी को नष्ट करने के लिए नहीं बना है. भारत की पहचान हिन्दू के रूप में है, जो सबको एक करता है. हमारा राष्ट्र संस्कृति के आधार पर एक है, राज्य की सीमाओं से नहीं.” “संघ व्यक्ति निर्माण करता है, बाकी कार्य स्वयंसेवक करते हैं” उन्होंने कहा कि समाज की स्वस्थ अवस्था का नाम ही संगठन है.
“संघ व्यक्ति निर्माण करता है, स्वयंसेवक संगठन करते हैं और बाकी सब कार्य करते हैं.” “सहकार, कृषि और उद्योग हमारे विकास के तीन स्तंभ” अपने संबोधन के अंत में डॉ. भागवत ने कहा कि सहकार, कृषि और उद्योग भारत के विकास के तीन प्रमुख आधार हैं. उन्होंने कहा, “छोटे और मध्यम उद्योग अर्थव्यवस्था को विकेंद्रित करते हैं. बड़े उद्योगों को इनके लिए अनुकूल वातावरण बनाना चाहिए.
खुशी आधारित उद्योगों से ही वास्तविक समृद्धि आएगी.” पर्यावरण और सामाजिक समरसता पर बल देते हुए उन्होंने आह्वान किया कि समाज को पर्यावरण संरक्षण के कार्यों—जैसे पानी बचाना, पेड़ लगाना, प्लास्टिक हटाना—में आगे आना चाहिए. परिवार सप्ताह में एक बार साथ भोजन करें, अपनी परंपराओं को जियें, और नागरिक कर्तव्य व अनुशासन के प्रति सजग बनें.


