भैरोंसिंह शेखावत। भैरोंसिंह शेखावत सुपुत्र देवीसिंह जी निवासी खाचरियावास जिला सीकर राजस्थान का जन्म 23 अक्टूबर 1923 को हुआ। उस दिन धनतेरस होने की वजह से इसे शुभ माना गया। शेखावत मध्यम वर्गीय परिवार से थे। उनकी शिक्षा के ग्रामीण परिवेश में हुई ।
उच्च शिक्षा के लिए 1941 में उन्होंने जयपुर महाविद्यालय में प्रवेश लिया किन्तु उसी वर्ष इनके पिताश्री का देहान्त हो गया । आर्थिक तंगी से कॉलेज छोड़ कर पुलिस में भर्ती हो गये जहाँ 1948 तक रहे। इनका विवाह 1941 में श्रीमती सूरज कंवर के साथ हुआ जिनसे इन्हें एक पुत्री प्राप्त हुई।
भैरोंसिंह शेखावत का राजनीतिक सफर 1952 में राजस्थान विधान सभा के चुनाव से शुरू हुआ । आपने अपने राजनीतिक जीवन की लम्बी और अप्रत्याशित पारी का कीर्तिमान स्थापित किया। वे जन नेता थे और सही मायने में राजस्थान राज्य का प्रतिनिधित्व करते थे।
भैरोंसिंह शेखावत अपनी तीक्ष्ण बुद्धि, वाकचातुर्य, हाजिर जवाबी, आमोद और हँसी-मजाक के लिए विशेष रूप से जाने जाते थे। वे राजस्थान की राजनीति के चाणक्य थे।
आप 1952-1972 तक लगातार राजस्थान विधान सभा के सदस्य रहे। 1972 में पहली बार हार का अनुभव करना पड़ा परन्तु शीघ्र ही 1973 में वे मध्यप्रदेश से राज्य सभा पहुंच गये। 1975 में आपातकाल के दौरान उन्हें रोहतक (हरियाणा) में जेल भेजा गया।
आपने 1977 में फिर विधान सभा का चुनाव जीतकर राजस्थान के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया। 1980 में इंदिरा गांधी ने उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया। इसी वर्ष उन्होंने भारतीय जनता पार्टी ज्वॉइन कर ली और विधानसभा में विरोधी दल के नेता चुन लिए गये।
1985 का चुनाव जीत फिर राजस्थान विधान सभा में पहुंच गये और दूसरी बार विरोधी दल के नेता चन लिए गये । 1990 केचुनावमें पार्टी को चुनाव
जिताया और दुबारा राज्य के मुख्य मंत्री बने। 1992 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। 1998 में वे जीत तो गये परन्तु पार्टी सरकार नहीं बना सकी और शेखावत तीसरी बार नेता विरोधी दल चुन लिए गये। 2002 में भैरोंसिंह शेखावत उप राष्ट्रपति चुन लिए गये।
जुलाई 2007 में इन्होंने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा परन्तु हार गये। इसलिए 21 जुलाई, 2007 को उप राष्ट्रपति पद त्याग दिया। इस प्रकार उनका राजनीतिक सफरनामा रंगीन, चुनौतियों से ओत-प्रोत, अनुकरणीय और प्रेरणास्पद रहा।
भैरोंसिंह शेखावत को उनकी गरीबी उन्मूलन योजना-अंत्योदय के लिए हमेशा याद किया जायेगा। इसके लिए विश्व बैंक के चेयरमेन रॉबर्ट मेकनमारा ने उनको भारत के “रोकफेलर” की उपाधि दी ।
उनका प्रशासनिक अनुभव अतुल्य और प्रशासनिक तंत्र और पुलिस पर पकड़ बड़ी प्रभावी थी । साक्षरता, औद्योगीकरण, पर्यटन विकास पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया।
कैंसर की बीमारी के कारण 15 मई, 2010 को उनका निधन हो गया । राजस्थान सरकार उनकी पावन स्मृति को संजोये रखने के लिए एक मेमोरियल का निर्माण करा रही है।
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