बिहार की राजनीति में लालू यादव की वापसी हो चुकी है। सोमवार को राजद सुप्रीमो ने चुनाव प्रचार की शुरुआत की, जो दानापुर में रोड शो के साथ शुरू हुआ। यह वही स्थान है जहां उनके करीबी रीतलाल यादव चुनावी मैदान में हैं, हालांकि रीतलाल इस समय 50 लाख रुपये रंगदारी मांगने के आरोप में जेल में हैं। इसके बावजूद, उनका काफिला किसी स्टार उम्मीदवार से कम नहीं लग रहा। एक कार्यकर्ता ने जोश में कहा कि यह भीड़ नहीं, बल्कि प्रेम की लहर है। लोग आज भी लालू यादव के दीवाने हैं।
दीघा से खगौल तक लगभग 15 किलोमीटर लंबे इस रोड शो में भीड़ का उत्साह देखने लायक था। गाड़ियों की कतारें, झंडों की लहराती फौज, नारेबाजी और लालू यादव की झलक पाने वाले समर्थक पुराने दौर की याद दिला रहे थे। इस दौरान उनकी बड़ी बेटी और राज्यसभा सांसद मीसा भारती भी साथ थीं। लालू यादव का बिहार के पिछड़े वर्गों में प्रभाव अब भी बरकरार है, जिनमें यादव और मुस्लिम समुदाय शामिल हैं। लेकिन आज का राजनीतिक समीकरण 1990 या 2015 जैसा नहीं है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब भी गैर-यादव पिछड़े समाज में मजबूत स्थिति में हैं।
इसके अलावा, सम्राट चौधरी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे ओबीसी नेता भी एनडीए के साथ हैं। नीतीश कुमार ने इस बार टिकट बंटवारे में अति पिछड़ों को विशेष महत्व देकर सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश की है। वहीं, दलित समुदाय में भाजपा ने अपनी पकड़ मजबूत कर रखी है। इस बार मुकाबला कड़ा माना जा रहा है। केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने लालू यादव के रोड शो पर कहा कि उनकी उम्र को देखते हुए हम इस बात का मुद्दा नहीं बनाना चाहते, लेकिन यह चिंता का विषय है कि कानून सबके लिए समान होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि उम्र के कारण लालू को दिक्कत होगी, लेकिन कानून की धाराओं का दुरुपयोग करना भी एक अपराध है। 2020 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव चुनावी मंचों से गायब रहे, तब राजद का पूरा कैंपेन तेजस्वी यादव पर निर्भर था। उस समय लालू फैक्टर की कमी महसूस की गई। 2015 का चुनाव आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण समीक्षा वाले बयान के कारण महत्वपूर्ण रहा, जिसने लालू यादव को नई ऊर्जा दी। लालू यादव अपने भाषणों के लिए जाने जाते हैं, जिसमें वह तंज, हंसी-मज़ाक और जनता की भाषा में बात करते हैं।
अब जब वह फिर से चुनावी मैदान में हैं, तो सबकी नजर इस बात पर है कि वह जनता से क्या कहेंगे। उनके आने से बिहार का चुनावी माहौल और दिलचस्प हो गया है। सियासी गर्मी बढ़ चुकी है और जनता फिर से पुराने लालू अंदाज को देखना चाहती है। उनकी मौजूदगी से राजद कार्यकर्ताओं में जोश है। हालाँकि, 40 साल से अधिक समय से नेता होने के नाते, यह देखना होगा कि उनकी एंट्री से पार्टी को कितना समर्थन मिलेगा।


