बिहार चुनाव में कांग्रेस ने राजद को पीछे छोड़ दिया है

Sabal SIngh Bhati
By Sabal SIngh Bhati - Editor

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आक्रामक अभियानों से राजद को बैकफुट पर ला दिया है। पिछले तीन दशक के राजनीतिक इतिहास में पहली बार यह देखने को मिल रहा है कि कांग्रेस ने चुनावी माहौल में राजद पर अग्रता हासिल कर ली है। राजद के तेजस्वी यादव, कांग्रेस के राहुल गांधी की छाया में दब से गए हैं। लालू यादव के समय वाले राजद में और तेजस्वी यादव के राजद में भूमि-आसमान का फर्क आ गया है। लालू यादव बिहार में कांग्रेस को अपने इशारे पर चलने के लिए मजबूर कर देते थे।

अपनी शर्तों पर सीट बंटवारा करते थे। यहां तक कि वे सोनिया गांधी तक को चुनौती दे डालते थे। कांग्रेस के बड़े से बड़े नेता भी लालू यादव से सीटों का मोलतोल नहीं कर पाते थे। जो वो देते थे, कांग्रेस हंस के या रो के उसे मंजूर कर लेती थी। लेकिन तेजस्वी यादव में वो बात नहीं है। हद तो ये है कि बिना विधायक और सांसद वाली पार्टी वीआईपी ने भी तेजस्वी के सामने बड़ी मांग रख दी है। इसकी देखादेखी वामदलों ने भी और अधिक हिस्सा मांग दिया है।

मंच पर तो तेजस्वी ही लीड रोल में हैं। राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभी भी लालू यादव ही हैं। लेकिन वे सेहत और उम्र के कारण बहुत कम सक्रिय हैं। पर्दे के पीछे बड़े फैसले वही ले रहे हैं। लेकिन राजनीतिक मंच पर तो तेजस्वी ही लीड रोल में हैं। लालू यादव ने संघर्ष और मेहनत से राजनीति में जगह बनायी है। जबकि तेजस्वी को जन्म के आधार पर बिना किसी संघर्ष के राजनीति का सजा सजाया मंच मिल गया है। दोनों के अनुभव की तुलना नहीं हो सकती। तेजस्वी को अभी बहुत कुछ सीखना है।

कांग्रेस जनता की ए टीम- अल्लावरुइस चुनाव में कांग्रेस का रवैया कितना बदल गया है, यह पार्टी के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु के एक बयान से स्पष्ट होता है। हाल ही में उनसे सवाल किया गया था, क्या बिहार में कांग्रेस, राजद की बी टीम बन कर रह गयी है? तो उनका जवाब था, कांग्रेस पार्टी बिहार की जनता की ए टीम बन कर इस बार चुनाव में उतरेगी। हम चुनाव के लिए एक मजबूत टीम तैयार कर रहे हैं। हम महागठबंधन के सहयोगी दल के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। मुकेश सहनी और वाम दलों का भी दबाव।

इसके अलावा तेजस्वी यादव वीआईपी और वाम दलों की हाई डिमांड से भी परेशान हैं। वीआईपी के मुकेश सहनी पिछले तीन महीने में 25 बार डिप्टी सीएम पोस्ट की मांग कर चुके हैं। इतना ही नहीं, वे ऊपर से 60 सीटें भी चाहते हैं। हैरानी की बात ये है कि मुकेश सहनी की पार्टी में न कोई विधायक है और न कोई सांसद, फिर भी वे बढ़-चढ़ कर डिमांड कर रहे हैं।

वहीं भाकपा माले का कहना है, जब बिना विधायकों-सांसदों वाली पार्टी डिप्टी सीएम पोस्ट और 40 से अधिक सीटें मांग रही हो तो फिर 11 विधायकों और दो सांसद वाली पार्टी को कितना हिस्सा मिलना चाहिए? जाहिर है वह भी 35-40 सीटें चाहती है।

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