बिहार वोटर सूची के गहन पुनरीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

Sabal SIngh Bhati
By Sabal SIngh Bhati - Editor

नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले चुनाव आयोग द्वारा कराए गए मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज एक बार फिर सुनवाई हुई। चुनाव आयोग की प्रक्रियाओं में खामियों को उजागर करते हुए दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने बिहार विधिक सेवा प्राधिकरण (बीएसएलएसए) को महत्वपूर्ण निर्देश दिए। कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को मतदाताओं की सहायता करने के लिए कहा। चुनाव आयोग की एसआईआर के दौरान जिन मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं, उनकी अपील पर निर्धारित समय सीमा के भीतर निर्णय होना चाहिए।

याचिकाकर्ताओं की इस अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर अगली तारीख पर सुनवाई के समय विचार किया जाएगा। दूसरी ओर, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता एनजीओ ने गलत विवरण प्रस्तुत किया है। आयोग के अनुसार, उस व्यक्ति का विवरण गलत है, जो दावा करता है कि उसका नाम अंतिम मतदाता सूची से हटा दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने ‘झूठे विवरण’ प्रस्तुत करने को लेकर चिंता व्यक्त की और कहा, ‘हमें आश्चर्य है कि ऐसा कोई व्यक्ति वास्तव में मौजूद है।’ अदालत के समक्ष गलत दावे और विवरण दाखिल किए जाने के मामले में एनजीओ की ओर से पैरवी कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अंतिम मतदाता सूची से अपना नाम हटाए जाने का दावा करने वाले व्यक्ति के विवरण की पुष्टि बीएसएलएसए की सहायता से की जा सकती है।

बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (बीएसएलएसए) को निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अपने जिला-स्तरीय निकाय को अंतिम मतदाता सूची से बाहर किए गए मतदाताओं को चुनाव आयोग में अपील दायर करने में सहायता करे। विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया को लेकर न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ सुनवाई कर रही है। पीठ ने कहा कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अपील दायर करने में मतदाताओं की सहायता के लिए अर्ध-विधिक स्वयंसेवकों की एक सूची जारी करेगा। यह सुनिश्चित करेगा कि उनके पास मतदाताओं के नाम खारिज होने के विस्तृत आदेश हों।

पीठ ने कहा, हम चाहते हैं कि सभी को अपील करने का उचित अवसर दिया जाए और उनके पास इस बारे में विस्तृत आदेश होने चाहिए कि उनके नाम क्यों हटाए गए हैं। यह एक पंक्ति का गूढ़ आदेश नहीं होना चाहिए।

Share This Article