कसार में स्थित बिजासन माता मंदिर, जिसे बाग वाली माता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, श्रद्धालुओं की आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है। यहां नवरात्रि के दौरान ही नहीं, बल्कि हर शनिवार और रविवार को भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में मां बिजासन के साथ सातों देवियों की प्रतिमाएं एक साथ विराजमान हैं। मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से लकवे और जोड़ों के दर्द जैसी पीड़ाएं दूर हो जाती हैं।
विशेषकर लकवे से ग्रसित और सर्पदंश से पीड़ित लोग यहां परिक्रमा कर माता के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। ग्रामीणों के अनुसार, यहां की प्रतिमाएं लगभग 500 वर्ष पुरानी हैं। पहले यह स्थान घने जंगल से घिरा हुआ था, जहां इमली, जामुन और आम के विशाल वृक्ष थे। इमली के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर माता की प्राचीन प्रतिमाएं स्थापित थीं, लेकिन इन्हें स्थापित करने वाले का उल्लेख नहीं मिलता। बाद में मंदिर का निर्माण जनसहयोग से किया गया।
मंदिर के सामने बावन भेरू की प्राचीन प्रतिमा, बाईं ओर मां कंकाली की प्रतिमा, पीछे प्राचीन कुंड में बालाजी की मूर्ति और दाईं ओर बावड़ी में जाना जींद बाबा का भव्य स्थान है। नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर पुजारी तुलसीराम प्रजापति ने बताया कि मंदिर के सामने बने सिंह द्वार का निर्माण 5 सितंबर 2019 को श्रद्धालुओं द्वारा कराया गया था। सिंह द्वार के दोनों ओर माता के वाहन शेरों की प्रतिमा तथा बीच में शेरावाली की मूर्ति स्थापित की गई।
उन्होंने बताया कि वर्षों से उनका परिवार माता की पूजा करता आ रहा है और नवरात्र में माता की प्रतिमाओं का भव्य श्रृंगार किया जाता है। मंदिर में यह मान्यता है कि केवल परिक्रमा लगाने से ही लोगों के कष्ट दूर हो जाते हैं। लकवे से पीड़ित कई लोग यहां दूसरे का सहारा लेकर आते हैं, लेकिन माता के दरबार में हाजिरी लगाने और राख ग्रहण करने से उनकी बीमारी दूर हो जाती है। श्रद्धालु बताते हैं कि यहां न तो कोई झाड़ा-फूंक होता है और न ही किसी पंडित की दवा-टोना।
केवल माता की परिक्रमा से ही पीड़ितों को राहत मिलती है। बीमारी से मुक्त होने के बाद श्रद्धालु भोग चढ़ाकर अपनी मन्नत पूरी करते हैं।