पक्षियों का प्राकृतिक भोजन नहीं है ज्वार-बाजरा, 90% कीटभक्षी

Tina Chouhan

कोटा। अनाज, ज्वार-बाजरा किसी भी पक्षी का प्राकृतिक भोजन नहीं है। लेकिन, लोग ज्वार-बाजरा खिलाकर प्रकृति के फूड चैन तोड़ रहे हैं। जिसके दुष्परिणाम घातक बीमारियों के रूप में सामने आ रहे हैं। आज सार्वजनिक स्थानों से घरों की छतों तक कबूतरों का कब्जा हो गया। कबूतरों को दाना डालकर लोग न केवल ईको सिस्टम को बर्बाद कर रहे बल्कि मानव जीवन को घातक संक्रमण व बीमारियों की ओर भी धकेल रहे हैं।

कबूतरों के फड़फड़ाहट के दौरान पंखों से निकलने वाले बारीक रेशें व बीट से हवा में फैलते बैक्टेरिया सांस के साथ शरीर में जाते हैं और गंभीर बीमारियों को जन्म देते हैं। यह बात वन्यजीव विभाग की ओर से सरकारी स्कूलों में आयोजित जागरूकता शिविर में उप वन संरक्षक अनुराग भटनागर ने बच्चों को जागरूक करते हुए कही। वाइल्ड लाइफ कोटा द्वारा बुधवार को राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पुलिस लाइन व श्रीपुरा स्थित पीएमश्री राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय में जागरूकता शिविर आयोजित किया गया। जिसमें बच्चों को पक्षियों के जीवन चक्र से रुबरू कराया।

आस्था के नाम पर पक्षियों को गुलाम बनाना नेचर के खिलाफ। उन्होंने बताया कि कबूतर के सम्पर्क में आने से फंग्ल इंफेक्शन हिस्टोप्लासमोसिस और क्रिप्टोकोकोसिस जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा रहता है। ऐसे में घर के आंगन, बालकनी या छत पर दाना डालने से बचें। प्रकृति ने उन्हें खुद भोजन जुटाने और जीवन जीने के लायक बनाया है। उन्हें दाना डालकर प्रकृति के ईको सिस्टम से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। आस्था के नाम पर पक्षियों को गुलाम बनाना नेचर के खिलाफ है। यदि, दान पुण्य करना है तो मवेशियों को हरा चारा, गुड़ खिला सकते हैं।

उप वन संरक्षक भटनागर बताते हैं, जन्मदिवस या अन्य खुशी के मौके पर गुब्बारों का उपयोग नहीं करना चाहिए। क्योंकि, यह वन्यजीव व जलीय जीवों की मौत के कारण बनते हैं। गुब्बारें दो तरह के होते हैं, पहला-बायोडिग्रेडेबल जो लेटेक्स होते हैं। वहीं, नॉन बायोडिग्रेडेबल होते हैं, जो बेहद खतरनाक होते हैं। गैस निकलने पर इनके दो ही जगह जंगल और नदियां-समुद्र में गिरने से कछुआ, उद बिलाव, व्हेल, डॉल्फिन, पक्षी गुब्बारों में उलझने या इनक टुकड़े निगलने से उनकी मौत हो जाती है।

डीएफओ भटनागर ने बच्चों को बताया कि दुनिया में 90% पक्षी कीटभक्षी और 10% बीजभक्षी होते हैं, जिसमें कबूतर भी शामिल है। अनाज, ज्वार व बाजरा किसी भी पक्षी का नेचुरल फूड नहीं है। जाने-अनजाने में इंसानी दखल से पक्षियों की खाद्यय शृखंला टूट रही है। वर्तमान में स्थिति यह हो गई कि कबूतर अब अपना मुख्य भोजन बीज खाना भूल गया, अब वह आर्टिफिशल फूड पर निर्भर हो गया। इतना ही नहीं कबूतरों को ज्वार-बाजरा खिलाना इंसान की दिनचर्या में शामिल हो गया। नियमित भोजन मिलने से उनकी संख्या में तेजी से इजाफा हुआ।

जबकि, इनके पंखों व बीट से हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस, फंग्ल इंफेक्शन हिस्टोप्लासमोसिस और क्रिप्टोकोकोसिस जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। कबूतरों की सूखी बीट के वायरस हवा के साथ शरीर में पहुंचकर फेफड़े डेमेज कर रहे हैं। आटासहायक वनपाल प्रेम कंवर ने बच्चों को जागरूक करते हुए कहा, बंदरों व लंगूर को भोजन, चीटिंयों को आटा नहीं खिलाना चाहिए। बंदर बड़े बीज वाले फल जैसे तेंदु, बेल पत्र, आम के फलों को खाकर बीज को एक स्थान से दूसरे स्थान पर फैलाते हैं, जिससे पड़ों की संख्या बढ़ती है।

लेकिन, रेडिमेड फूड खिलाने से वे जंगल से आबादी के बीच बस गए। इनके काटे जाने से रेबीज तक का खतरा रहता है। इसी तरह चीटिंयों को आटा नहीं खिलाना चाहिए। इस दौरान कोटा ग्रीन कम्यूनिटी के प्रणव सिंह खींची, ज्योत्सा खींची मौजूद रहें।

Share This Article