कर्नाटक के मंत्री प्रियंक खरगे ने आरोप लगाया है कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बच्चों ने छात्रावास के छात्रों पर आरएसएस की रूट मार्च में शामिल होने के लिए दबाव डाला। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर विरोध जताने के कारण उन्हें धमकियां मिलीं। खरगे ने सवाल उठाया कि जो कानून दूसरों पर लागू होते हैं, वे आरएसएस पर क्यों नहीं लागू होते और उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर समान कानून लागू करने की मांग की।
खरगे ने बताया कि चित्तापुर में आरएसएस मार्च को प्रतिष्ठा का विषय बना दिया गया और छात्रों को फोन करके मार्च में आने के लिए मजबूर किया गया। उन्होंने कहा, “मैंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा कि कोई भी संगठन ऐसी प्रथाओं में लिप्त न हो।” बेंगलुरु सड़कों पर रैलियों पर हाईकोर्ट के प्रतिबंध का हवाला देते हुए उन्होंने पूछा कि आरएसएस को छूट क्यों दी जाती है। मुद्दे को राजनीतिक बनाने की कोशिश आरएसएस के कोर्ट में दाखिल हलफनामे पर खरगे ने कहा कि संगठन ने केंद्र सरकार को शामिल कर मुद्दे को राजनीतिक बनाने की कोशिश की।
चित्तापुर में मार्च की अनुमति पहले कानून-व्यवस्था के आधार पर खारिज की गई थी, लेकिन हाईकोर्ट के निर्देश पर पुनर्विचार हुआ। यदगिरी में गुरमीतकल में 31 अक्टूबर को सशर्त अनुमति के साथ मार्च हुआ, जिसमें उकसावे वाले नारे और हथियार ले जाने पर रोक थी। लाठी-भाला छोड़कर राष्ट्रीय ध्वज। इस बीच, कलबुर्गी में शांति बैठक बेनतीजा रही, जहां भीम आर्मी जैसे संगठनों ने आरएसएस से लाठी-भाला छोड़कर राष्ट्रीय ध्वज और संविधान की प्रस्तावना ले जाने की मांग की, जिसे आरएसएस ने ठुकरा दिया।
सरकार ने निजी संगठनों के लिए सरकारी संपत्ति उपयोग हेतु पूर्व अनुमति अनिवार्य की थी, जिसे हाईकोर्ट ने स्थगित कर दिया। बिदर में आरएसएस मार्च में शामिल चार शिक्षकों को नोटिस जारी किया गया।


