भारतीय खदानों में औपनिवेशिक भावनाओं का राज : अमिताभ घोष

Sabal Singh Bhati
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तिरुवनंतपुरम, 3 फरवरी ()। प्रसिद्ध लेखक और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता अमिताभ घोष ने कहा है कि शोषणकारी अर्थव्यवस्था पिछली शताब्दियों में दुनिया भर में उपनिवेशवाद की पहचान रही। उन्होंने कहा कि वही अर्थशास्त्र झारखंड और ओडिशा की खनिज समृद्ध खदानों में आज भी शासन कर रहा है।

घोष ने यहां मातृभूमि इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ लेटर्स (एमबीआईएफएल) में यह बात कही।

घोष यहां के प्रतिष्ठित सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज में फैकल्टी रह चुके हैं। उन्होंने कहा कि संसाधन लोगों के लिए अभिशाप बन गए हैं। उनकी जमीन शोषक अर्थव्यवस्था के चंगुल में फंस गई है।

खनन कंपनियां झारखंड की यूरेनियम खदानों का उन सभी स्थानीय लोगों की कीमत पर शोषण कर रही हैं, जिनका जीवन उनके पास मौजूद संसाधनों के कारण बर्बाद हो गया है। एक और अच्छा उदाहरण ओडिशा में नियामगिरी है। यह आदिवासियों के लिए पवित्र पर्वत है, लेकिन उन्हें उनकी जमीन से हटा दिया गया है और उनकी भूमि खनन कंपनियों द्वारा जब्त कर ली गई है।

अपनी पुस्तक द नटमेग कर्स की पृष्ठभूमि पेश करते हुए घोष ने कहा कि बांदा द्वीप समूह में 1,621 लोगों का नरसंहार जायफल के व्यापार को नियंत्रित करने के लिए किया गया जो कि एक मूल्यवान वस्तु है, जो केवल उसी इलाके में पैदा होता है। यह बाद में लोगों की गुलामी का कारण बन गया और कई लोगों को बांदा में जायफल के बागानों में काम करने के लिए दक्षिण भारत से लाया गया।

इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जहां वाणिज्यिक हितों के आगे लोग बेबस हो गए।

घोष ने कहा, सौभाग्य से भारत में कुछ वर्षों के लिए हम एक्सट्रा एक्टिविज्म को दूर रखने में सक्षम थे, लेकिन अब यही काफी उग्र हो गया है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था में एक मॉडल बन गया है।

घोष ने कहा, यह एक ऐसी सोच है जो 17वीं शताब्दी के यूरोपीय ²ष्टिकोण में निहित है कि पृथ्वी एक मशीन है जिसे किसी भी तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका विरोध यूरोप में भी हुआ क्योंकि जमीन को पवित्र मानने वाले लोगों ने इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। इस लड़ाई में महिलाएं सबसे आगे थीं।

इतिहासकार दस्तावेजों पर भरोसा करते हैं लेकिन पेड़, पहाड़ या ज्वालामुखी जैसे प्रकृति के तत्व शायद ही कभी इस इतिहास का हिस्सा रहे हैं। लेकिन इसने मानव जाति के इतिहास में जो भूमिका निभाई वह निर्णायक है। दुनिया भर के एलीट गैर-मानव चीजों को निष्क्रिय मानता है।

यह एक ऐसा ²ष्टिकोण है जिसे एक उपनिवेशवादी संसाधनों के रूप में मानव और गैर-मानव का उपयोग करता है जिसके चलते कुछ प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं।

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Sabal Singh Bhati is CEO and chief editor of Niharika Times