पूजा में कलावा बांधने में होने वाली सामान्य गलतियाँ

vikram singh Bhati

भारतीय संस्कृति में कलावा, जिसे मौली, रक्षा सूत्र या राखी भी कहा जाता है, केवल एक धागा नहीं है, बल्कि यह विश्वास, परंपरा और सुरक्षा का प्रतीक है। पूजा, व्रत, हवन या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के बाद इसे बांधते समय लोग मानते हैं कि यह धागा उन्हें नकारात्मक शक्तियों से बचाएगा और सौभाग्य लाएगा। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस पवित्र धागे से जुड़ी कुछ विशेष मान्यताएँ हैं, जिनका पालन न करने पर इसका प्रभाव उल्टा पड़ सकता है।

कई बार लोग अनजाने में कलावा को महीनों तक हाथ में बांधे रखते हैं, जबकि शास्त्र इसके विरुद्ध चेतावनी देते हैं। कलावा व्यक्ति के आसपास की ऊर्जा को भी प्रभावित करता है। यह सकारात्मक तरंगों को अपने भीतर समाहित करता है, लेकिन समय बीतने के साथ इसकी शक्ति कम होने लगती है और यही वह मोड़ है जब इसके अशुभ प्रभाव की संभावना बढ़ जाती है। कई पंडित और पुरोहित समय-समय पर यह समझाते हैं कि कलावा न केवल श्रद्धा का धागा है, बल्कि उसे सही समय पर उतारना भी आवश्यक है।

कलावा बांधने के दौरान की जाने वाली गलतियाँ किस तरह बिगाड़ सकती हैं किस्मत। हिंदू परंपरा में हर अनुष्ठान का एक विशेष शास्त्रीय नियम होता है, और कलावा बांधना भी इसी सिद्धांत के अंतर्गत आता है। लेकिन कई लोग जल्दबाजी में या अज्ञानता के कारण कुछ गलतियाँ कर देते हैं जो कलावा की ऊर्जा को कमज़ोर कर देती हैं। यह धागा तभी प्रभावी होता है जब इसे योग्य विधि से मंत्रोच्चारण के साथ बांधा जाए। पहली गलती अक्सर यह होती है कि लोग कलावा बांधते समय सिर को ढकना भूल जाते हैं।

वैदिक परंपरा के अनुसार सिर ढककर ही पवित्र मंत्रों का प्रभाव सर्वोत्तम रूप से ग्रहण किया जा सकता है। दूसरी गलती मुट्ठी खोलकर हाथ आगे बढ़ाने की है। मुट्ठी बंद रखने का अर्थ होता है कि आप नकारात्मक ऊर्जा को पीछे छोड़कर सकारात्मक शक्ति को ग्रहण कर रहे हैं। तीसरी सामान्य गलती यह है कि लोग कलावा को बिना किसी नियम के बांध देते हैं जबकि शास्त्रों में इसे तीन बार लपेटने का विधान बताया गया है। तीन लपेटे त्रिदेव, त्रिगुण और तीन लोकों की ऊर्जा का प्रतीक माने गए हैं।

अगर इन नियमों का पालन न किया जाए, तो कलावा अपने वास्तविक प्रभाव तक नहीं पहुंच पाता। अधिकतर लोग मान लेते हैं कि कलावा एक बार बांध दिया जाए तो उसे महीनों या सालों तक हाथ में रहने देना चाहिए। लेकिन वैदिक मान्यताओं के अनुसार यह गलत है। शास्त्रों में कहा गया है कि कलावा को अधिकतम 21 दिनों तक हाथ में रखना शुभ माना गया है। यह अवधि इसलिए निर्धारित की गई है क्योंकि 21 दिन में धागा वातावरण, शरीर और ऊर्जा के संपर्क में आकर अपनी शक्ति का अधिकतर हिस्सा खो देता है।

इस दौरान यह नकारात्मक ऊर्जा को लगातार सोखता रहता है। अगर कलावा फीका पड़ने लगे, धागा घिसने लगे या गंदा हो जाए, तो यह संकेत होता है कि उसने अपनी ऊर्जा को पूरा खर्च कर दिया है। ऐसे में इस धागे को हाथ पर रखना अशुभ प्रभाव दे सकता है। कई लोगों की किस्मत इसलिए भी अटक जाती है क्योंकि वे इस धागे को महीनों तक हाथ में बांधे रहते हैं। कलावा उतारते समय इसे कहीं भी फेंक देना एक बड़ी भूल है। कलावा उतारते समय सबसे पहले उसे प्रणाम करना चाहिए।

इसे बहते हुए साफ जल में प्रवाहित करना या किसी पवित्र वृक्ष की जड़ में सम्मानपूर्वक रखना चाहिए। ध्यान रहे कि कलावा को कभी भी जूते-चप्पल के पास, कूड़े में या घर के किसी कोने में फेंकना नहीं चाहिए। ऐसा करना पितरों, देवताओं और उस धागे के प्रति अपमान माना जाता है। आधुनिक ऊर्जा विज्ञान भी मानता है कि लाल धागा शरीर की ऊर्जा को स्थिर करने में सक्षम होता है। यह अंगुलियों के नज़दीक की नसों और तंत्रिकाओं को हल्का दबाव देकर मन को शांत करता है।

यही कारण है कि कलावा पहनने पर कई लोगों को मानसिक स्थिरता, आत्मविश्वास और सकारात्मकता का अनुभव होता है। लेकिन यह प्रभाव तभी टिकता है जब धागे को समय पर बदला जाए।

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Vikram Singh Bhati is author of Niharika Times web portal