नई दिल्ली। कांग्रेस ने रविवार को आरोप लगाया कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने 2019 में सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन कर इस कानून की मूल भावना को कमजोर किया है। सूचना के अधिकार कानून को लागू हुए आज 20 वर्ष पूरे हो गए हैं। कानून को 2005 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार लाई थी। इस अवसर पर आज कांग्रेस पार्टी ने प्रेसवार्ता की।
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने प्रेसवार्ता में कहा कि पहले यह कानून नागरिकों और मीडिया को सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और जानकारी तक पहुंच देता था, लेकिन 2019 के संशोधनों ने इसकी ताकत को सीमित कर दिया और जवाबदेही पर असर डाला है। रमेश ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम के इतिहास में जब इसका मसौदा तैयार किया गया था, तब इसे स्टैंडिंग कमेटी को भेजा गया। उस समय डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व की सरकार ने स्टैंडिंग कमेटी की सभी सिफारिशें मानते हुए कानून को सभी आवश्यक संसाधनों के साथ पारित किया।
लेकिन, 2019 में मोदी सरकार ने स्टैंडिंग कमेटी द्वारा सुझाए गए संशोधनों को अस्वीकार कर दिया, जिससे अधिनियम को पहला बड़ा झटका लगा। उन्होंने कहा कि पहले अगर किसी सरकारी विभाग से जानकारी नहीं मिलती थी, तो लोग सूचना का अधिकार का इस्तेमाल कर जानकारी प्राप्त कर सकते थे। लेकिन 2019 के संशोधनों के बाद कई महत्वपूर्ण मामलों में जानकारी तक पहुंच पर असर पड़ा। उन्होंने कहा कि सरकार ने दावा किया था कि करोड़ों लोगों के पास फर्जी राशन कार्ड हैं, जो सूचना का अधिकार में मांगी गई जानकारी में गलत साबित हुआ।
नोटबंदी से चार घंटे पहले आरबीआई की केंद्रीय समिति की बैठक हुई थी, जिसमें कहा गया कि नोटबंदी से काले धन पर कोई असर नहीं होगा। इसके अलावा सूचना का अधिकार के जरिए सरकार से एनपीए डिफॉल्टर्स और बकाएदारों की सूची मांगी गई थी। साथ ही यह जानकारी मांगी गई कि देश में कितना काला धन वापस आया, जिसमें बताया गया कि कोई काला धन वापस नहीं आया। रमेश ने कहा कि इन संशोधनों ने जनता की सूचना तक पहुंच को सीमित कर दिया और अधिनियम के मूल उद्देश्य को कमजोर किया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के 20 साल पूरे होने पर कहा कि आरटीआई ने शुरुआत में पारदर्शिता और जवाबदेही के नए युग की नींव रखी थी, लेकिन पिछले 11 वर्षों में केंद्र सरकार ने इस कानून को व्यवस्थित रूप से कमजोर कर लोकतंत्र और नागरिकों के अधिकारों को खोखला कर दिया है। खरगे ने अपने एक्स पोस्ट में लिखा कि 20 साल पहले कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के मार्गदर्शन में आरटीआई अधिनियम लागू किया था।
यह अधिनियम भ्रष्टाचार, सरकारी जवाबदेही और सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए एक मजबूत उपकरण था, लेकिन 2014 के बाद इसके मूल उद्देश्य पर लगातार हमला हुआ। उन्होंने कहा की साल 2019 में मोदी सरकार ने अधिनियम को बदल दिया और सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन पर नियंत्रण कर स्वतंत्र अधिकारी को नौकरशाहों जैसा बना दिया। 2023 में लागू हुए डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानून ने आरटीआई के सार्वजनिक हित वाले हिस्से को प्रभावित किया और भ्रष्टाचार की जांच में बाधा डाली।
केंद्रीय सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर कोई नियुक्त नहीं है और वर्तमान में आठ पद 15 महीनों से खाली हैं, जिससे अपील प्रक्रिया धीमी हो गई है और हजारों लोग न्याय पाने से वंचित हैं। उन्होंने दावा किया कि सरकार ने कोविड महामारी, राष्ट्रीय सर्वेक्षण 2017-18, कृषि सर्वेक्षण 2016-2020 और पीएम केयर फंड के दौरान मौतों और आंकड़ों की जानकारी छुपाई, जिससे जवाबदेही से बचा जा सके। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि आरटीआई अधिनियम के मूल उद्देश्य को बचाना और नागरिकों को उनकी जानकारी तक पहुंच सुनिश्चित करना अब और जरूरी हो गया है।


