नई दिल्ली। कांग्रेस ने कहा कि मंगोलिया के राष्ट्रपति उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मंडल के साथ दिल्ली में हैं, जहां लद्दाख के बौद्ध भिक्षु 19वें कुशोक बकुला रिनपोछे बेहद लोकप्रिय हैं, लेकिन लद्दाख के लोग सरकार से मरहम की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कांग्रेस संचार विभाग के प्रभारी जयराम रमेश ने मंगोलिया के राष्ट्रपति की भारत यात्रा का उल्लेख करते हुए लद्दाख के मुद्दे को उठाया और केंद्र सरकार से लद्दाख के लोगों की मांगों पर विचार कर उनकी समस्याओं का समाधान करने की अपील की। उन्होंने कहा कि मंगोलिया के राष्ट्रपति उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ नई दिल्ली पहुंचे हैं।
भारत और मंगोलिया के बीच राजनयिक संबंध दिसंबर 1955 में स्थापित हुए थे। भारत ने अक्टूबर 1961 में मंगोलिया को संयुक्त राष्ट्र में शामिल कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस रिश्ते में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अक्टूबर 1989 में 19वें कुशोक बकुला रिनपोछे को मंगोलिया में भारत का राजदूत नियुक्त किया। उन्होंने जनवरी 1990 में पदभार संभाला और असामान्य रूप से दस वर्षों तक वहाँ भारत के राजदूत रहे।
रमेश ने कहा कि 1990 में साम्यवाद के पतन के बाद मंगोलिया को उसकी बौद्ध विरासत से दोबारा जोड़ने और पुनर्जीवित करने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। मंगोलिया में आज भी उन्हें एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व के रूप में सम्मानित किया जाता है। जयराम रमेश ने कहा कि कांग्रेस ने हमेशा कुशोक बकुला रिनपोछे का सम्मान किया है, यही कारण है कि 20 जून 2005 को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने लेह हवाई अड्डे का नाम बदलकर कुशोक बकुला रिनपोछे हवाई अड्डा रखा और उन्हें आधुनिक लद्दाख के शिल्पकार के रूप में सम्मानित किया।
बौद्ध धर्म का पुनर्जागरण- न केवल मंगोलिया और पूर्व सोवियत संघ में, बल्कि भारत में भी – उनके प्रयासों का परिणाम है। कांग्रेस नेता ने कहा कि आज 19वें कुशोक बकुला रिनपोछे का लद्दाख देश से मरहम की प्रतीक्षा कर रहा है, खासकर उस पार्टी के नेतृत्व से जिसने 2020 के स्थानीय हिल काउंसिल चुनावों में छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा का वादा किया था, लेकिन अब वह सत्ता में आकर इसे पूरा करने से पीछे हट रही है।


