बिहार चुनाव में कांग्रेस की गिरती स्थिति और अतीत की यादें

Sabal SIngh Bhati
By Sabal SIngh Bhati - Editor

जयपुर डेस्क। भारत की राष्ट्रीय और सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस बिहार चुनाव के दौरान फिर से चर्चा में है। कांग्रेस अपने स्वर्णिम काल से अब गर्त में जा चुकी है। एक समय था जब कांग्रेस पार्टी के अलावा बिहार में कोई और दल नहीं था। पार्टी ने कई बार बहुमत के साथ सरकार बनाई और पांच साल तक शासन किया। जब नेहरू प्रधानमंत्री थे (1947-64) तब बिहार में कांग्रेस की स्थिति मजबूत थी। उदाहरण के लिए, 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 330 सीटों में से 239 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया था।

1957 के चुनाव में भी कांग्रेस ने 318 सीटों में से 210 सीटें जीतीं और 1962 में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी रही, 318 में से 185 सीटें जीती थीं। इस समय कांग्रेस बिहार में लगभग अनिवार्य पार्टी थी, और केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व के सहारे राज्य में उसकी स्थिति भी मजबूत थी। समय के साथ कांग्रेस का परिदृश्य बदलने लगा – नए दलों का उदय हुआ, सामाजिक समीकरण बदल गए और कांग्रेस की स्थिति कमजोर हुई। उदाहरण के लिए, 2020 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल 19 सीटें जीतीं।

वर्तमान में (2025 के चुनावों के संदर्भ में) कांग्रेस ने 2020 की तुलना में अब 59 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। यह संकेत देता है कि पार्टी ने अपनी सीमाएं स्वीकार की हैं और गठबंधन-रणनीति पर अधिक निर्भर हो रही है। पहले दौर (1950-60 दशक) में कांग्रेस राज्य का प्रमुख दल था, जबकि आज वह एक बड़ी शक्ति नहीं रही; उसे अन्य दलों, विशेष रूप से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) एवं अन्य गठबंधनों द्वारा चुनौती मिल रही है। 2020 में आरजेडी ने कांग्रेस से बहुत आगे खड़ी दिखाई दी।

कांग्रेस अब अपनी सीट संख्या और संसाधनों को घटा रही है और गठबंधन के हिस्से के रूप में काम कर रही है। पहले कांग्रेस अकेले सक्रिय थी, अब बिहार में जाति, गठबंधन, क्षेत्रीय नेता- पहचानों का महत्व बढ़ गया है। पहले कांग्रेस की सरकार-सत्ता-प्रभाव के कारण उसकी मजबूती थी, अब उसे शक्ति वापस पाने के लिए नए रूप-रूप में रणनीति बनानी पड़ रही है। नेहरू के समय बिहार में कांग्रेस का दबदबा था, विधानसभा चुनावों में स्पष्ट बहुमत से जीतती थी, लेकिन आज की राजनीति में कांग्रेस अपनी पुरानी स्थिति में नहीं है।

उसे गठबंधनों के सहारे आगे बढ़ना पड़ रहा है और उसकी सीट-योजना, संसाधन और प्रभाव पहले से कम हुआ है। दशक-वार (1950 से 2020 तक) बिहार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन 1950-1960 का दशक: स्वर्णिम आरंभ 1952 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस ने 239/330 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत पाया। 1957 में भी पार्टी ने 210/318 सीटें जीतीं और सत्ता बरकरार रखी। 1962 में कांग्रेस ने 185/318 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सरकार बनाई। 1970-1980 का दशक: गिरावट की शुरूआत नेहरू के निधन (1964) और इंदिरा गांधी के समय तक आते-आते कांग्रेस की एकता कमजोर होने लगी।

1967 के चुनाव में कांग्रेस को केवल 128/318 सीटें मिलीं, यह पहला बड़ा झटका था। 1972 में इंदिरा लहर के बावजूद कांग्रेस ने 167 सीटें जीतीं, पर स्थिरता कम रही। 1977 में आपातकाल के बाद जनता पार्टी की बाढ़ आई, कांग्रेस को सिर्फ 57 सीटें मिलीं। 1980-1990 का दशक: क्षेत्रीय राजनीति का उदय 1980 में इंदिरा गांधी की वापसी से कांग्रेस ने 169 सीटें पाईं, लेकिन जनादेश पहले जैसा नहीं था। 1985 में राजीव गांधी प्रभाव से कांग्रेस को 196 सीटें मिलीं, अंतिम बार उसने बहुमत देखा।

1990 में लालू प्रसाद यादव की जनता दल सत्ता में आई, और कांग्रेस सिर्फ 71 सीटों पर सिमट गई। 1990-2010 का दशक: कांग्रेस का हाशियाकरण लालू और बाद में राबड़ी देवी के शासन में कांग्रेस हाशिये पर चली गई। 1995 में कांग्रेस 29 सीटों पर सिमट गई। 2000 में पार्टी को मात्र 23 सीटें मिलीं। 2010 में कांग्रेस केवल 4 सीटें जीत पाई, इतिहास की सबसे खराब स्थिति। 2010-2020 का दशक: गठबंधन की राजनीति में जीवित पार्टी 2015 में कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू के महागठबंधन में शामिल हुई, उसे 27 सीटें मिलीं, जो सुधार का संकेत था।

2020 में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, पर सिर्फ 19 सीटें जीत पाई। अब कांग्रेस बिहार में क्षेत्रीय दलों के अधीन सहयोगी भूमिका निभा रही है।

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