मनरेगा को कमजोर करने की सरकार की रणनीति पर कांग्रेस की चिंता

Sabal SIngh Bhati
By Sabal SIngh Bhati - Editor

नई दिल्ली। कांग्रेस ने मनरेगा को ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की महत्वपूर्ण योजना बताते हुए कहा कि एक रणनीति के तहत दुनिया की इस सबसे बड़ी कल्याणकारी योजना को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस संचार विभाग के प्रभारी जयराम रमेश ने एक बयान में इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि केंद्र सरकार ने इस योजना को पर्याप्त बजट का आवंटन नहीं किया है।

उन्होंने कहा कि वित्त मंत्रालय के नियमों के अनुसार किसी भी सरकारी योजना को वित्तीय वर्ष में बजट का 60 प्रतिशत से अधिक खर्च करने की अनुमति नहीं है, लेकिन मंत्रालय ने सिर्फ 5 महीनों में ही 60 प्रतिशत बजट खत्म कर दिया है, जिससे देश की करोड़ों ग्रामीण परिवारों के भविष्य पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है। रमेश ने कहा कि यह संकट कोई अपवाद नहीं, बल्कि मोदी सरकार द्वारा मनरेगा को कमजोर करने की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है। मनरेगा को पिछले 11 वर्षों से पर्याप्त बजट नहीं मिला है।

उच्च महंगाई के बावजूद पिछले 3 सालों से बजट लगभग स्थिर है। इससे योजना की मांग-आधारित दृष्टि का मजाक बन गया है और करोड़ों श्रमिकों को जरूरत पड़ने पर काम नहीं मिल पाता है। उन्होंने आरोप लगाया कि मनरेगा मजदूरों को वेतन भुगतान 15 दिनों की वैधानिक समयसीमा के बाद भी देर से मिलता है और मुआवजा भी नहीं दिया जाता। हर साल मनरेगा के बजट का 20-30 प्रतिशत हिस्सा पिछले साल का बकाया चुकाने में चला जाता है।

पिछले 11 वर्षों में मनरेगा की मजदूरी में बमुश्किल ही कोई वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप स्थिर आय का व्यापक संकट उत्पन्न हो गया है। कांग्रेस नेता ने इस योजना की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाया और कहा कि पारदर्शिता और जवाबदेही के नाम पर सरकार ने राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली-एनएमएमएस ऐप और आधार आधारित भुगतान प्रणाली-एबीपीएस जैसी तकनीकें लागू की हैं। अनुमानों के अनुसार इससे 2 करोड़ से अधिक मजदूरों को उनके कानूनी हक़ का काम और भुगतान नहीं मिल पाया है।

कांग्रेस ने हमेशा मनरेगा को मजबूत करने की मांग करते हुए कहा है कि मनरेगा के बजट में जरूरी वृद्धि की जाएं और समय पर मजदूरी भुगतान सुनिश्चित करने की नीति का पालन हो। मनरेगा की न्यूनतम मजदूरी 400 रुपये प्रतिदिन तय की जाएं, ताकि वास्तविक आय में वृद्धि हो सके। भविष्य में मजदूरी दर तय करने के लिए एक स्थायी समिति का गठन हो और एबीपीएस तथा जैसी कठिनाई बढ़ाने वाली तकनीक को अनिवार्य रूप से लागू करने की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाई जाए।

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