जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस मुन्नुरी लक्ष्मण एवं जस्टिस बिपिन गुप्ता की खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए प्रदेशभर में विभिन्न सरकारी योजनाओं और विभागों में प्लेसमेंट एजेंसियों, संविदा के माध्यम से कार्यरत हजारों कर्मचारियों के लिए राहत दी है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि प्लेसमेंट एजेंसी से नियुक्त संविदा कर्मियों को भी नियम 2022 का लाभ मिलेगा। इसके साथ ही सरकार को सभी पात्र कर्मचारियों को नियम 2022 के तहत अधिकार देने के निर्देश दिया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता जितेन्द्र सिंह भलेरिया, डॉ.
निखिल डुंगावत, पवन सिंह, दीपक जांगिड़, गजेन्द्रसिंह व दीपक पारीक ने पैरवी करते हुए कहा कि नियुक्ति की प्रक्रिया और काम का स्वरूप समान है, तो लाभ से वंचित करना असंवैधानिक है। राज्य सरकार की ओर से विभिन्न विभागों के अतिरिक्त महाधिवक्ताओं ने यह तर्क रखा कि बिना विज्ञापन एजेंसी से की गई नियुक्ति को नियम 2022 के अंतर्गत नहीं लाया जा सकता।
हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद राजस्थान सिविल पदों पर संविदा भर्ती नियम, 2022 की व्याख्या करते हुए कहा कि यदि कोई कर्मचारी प्रशासनिक विभाग द्वारा वित्त विभाग की सहमति से निर्मित पद पर नियुक्त है और नियुक्ति सार्वजनिक विज्ञापन के माध्यम से हुई है, तो यह मायने नहीं रखता कि नियुक्ति सीधे सरकार द्वारा हुई या फिर किसी प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए। ऐसे सभी कर्मचारियों को नियम 2022 का लाभ मिलेगा। याचिकाकर्ता डाटा एंट्री ऑपरेटर / कम्प्यूटर ऑपरेटर के रूप में मनरेगा जैसी योजनाओं में प्लेसमेंट एजेंसियों के माध्यम से कार्यरत थे।
उनका कहना था कि चूंकि वे वित्त विभाग की सहमति से बने पदों पर नियुक्त हुए हैं और समान कार्य कर रहे हैं, उन्हें भी नियम 2022 का लाभ मिलना चाहिए। राज्य सरकार का पक्ष था कि चूंकि उनकी नियुक्ति विज्ञापन जारी कर प्रत्यक्ष चयन से नहीं हुई बल्कि एजेंसी से हुई है। अत: वे नियम 2022 के दायरे में नहीं आते हैं। नियम 3 की व्याख्या में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि प्लेसमेंट एजेंसी से आए कर्मचारियों को बाहर रखा जाएगा।
यदि नियुक्ति सार्वजनिक विज्ञापन से हुई है और पद वित्त विभाग की सहमति से बनाए गए हैं, तो कर्मचारियों को बाहर करना भेदभावपूर्ण है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।