गोभक्त तेजाजी – राजस्थान के लोक देवता

Kheem Singh Bhati
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राजस्थान के लोक देवता के रूप के जिन गोभक्त तेजाजी को पूजा जाता है, वे सामान्य जाट किसान के घर में जन्मे थे । राजस्थान की धरती सदा से वीरों का सम्मान करती आई है। लोकरक्षा और व्यक्तिगत प्रान के लिए बलिदान होने वालों को समान रूप से यहां के जन जीवन ने अपने हृदय में स्थान दिया है।

तेजाजी अपने गांव और आसपास में अपनी वीरता के लिए तथा निर्भयता के लिए तेजाजी के नाम से सुविख्यात था। उनके बलिदान के पश्चात सम्बोधन सूचक ‘जी’ जोड़कर जनता ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलियां अर्पित की और ग्राम की रक्षा करने वाले व्यक्ति को पीड़ा से मुक्त कराने वाले ग्राम देवताओं में उन्हें स्थान देकर अपनी श्रद्धा को मूर्त रूप दिया ।

बचपन से ही तेजाजी शरीर का बलिष्ठ और कार्यकुशल था। अपने पिता के कार्य में वह यथासम्भव हाथ बंटाता और घर के सभी छोटे बड़ों की सेवा में तत्पर रहता । उसे अपने गांव में लोगों के दुःख दर्द का बहुत अधिक ध्यान रहता । नित्य वह घर घर जाकर लोगों के प्रति अपनी सद्भावनाएं व्यक्त करता और जहां कहीं भी सेवा का अवसर देखता, करने से कभी नहीं चूकता था।

एक विशेष बात जो उसमें थी, वह थी अपनी धुन को पूर्ण करने की । जिस काम को करने का वह बीड़ा उठाता, जब तक उसे समाप्त नहीं कर लेता – दम नहीं लेता था । दुर्योग की बात थी, किशोरावस्था तक पहुंचने के पहले ही पिता का छत्रछाया उन पर से उठ गई थी। घर में बड़े भाई, भाभियां थीं और बूढ़ी मां थी ।

राजस्थान के लोक देवता गोभक्त तेजाजी

गोभक्त तेजाजी - राजस्थान के लोक देवता
गोभक्त तेजाजी – राजस्थान के लोक देवता

अब तक भी तेजाजी स्वेच्छा से पशुओं को बांधना, पानी पिलाना, चारा डालना आदि कार्य वे अत्यन्त कुशलता और प्रसन्नता के साथ सम्पन्न करते रहते थे। इसी प्रकार आषाढ का महीना आया। पास पड़ौस के सभी किसान खेतों को जोतने औौर संवारने में लग गये ।

तेजाजी के घर में उनके पिता ने मर कर जो रिक्त स्थान खेत के काम में बना दिया था, उसे भरने की चिता उनकी मां और भाइयों को सताने लगी थी । वर्षा की पहली झड़ियों ने धरती को सजल कर दिया। काली काली घटाएं आकाश में उमड़ने लगीं। किसान का मन खेतों को हरा भरा देखने के लिए नृत्य करने लगा ।

उसकी मां ने अपने भविष्य को समझ कर ही ऐसे समय में तेजाजी को अपने पास बुलाया और घर की सारी परिस्थितियां समझा कर यह आग्रह किया कि बेटा अब तो अपने भाइयों का हाथ बटाने के लिए तुम्हें भी खेत में जाना चाहिए। तुम्हारे भाई देखो कितना परिश्रम करते हैं। तुम्हारे दादा (पिता) तो चले गये।

अब उनका काम भी भाइयों को ही देखना पड़ता है। इसलिए अपनी अतिरिक्त बैल की जोड़ी को तुम सम्भाल लो । तुम्हारे भाग्य से खेतों में सोना निपजेगा ।

कोई थारी तो जोड़ी का रै बीजेंगा मोती तेजाजी ने अपनी बाल्यावस्था की चर्चा की। लेकिन मां के ग्राग्रह को देख उन्होंने हल जोता और दूसरे दिन से खेत ही की भूमि को जोतना प्रारम्भ कर दिया । तेजाजी के जिम्मे का घरेलू काम मां ने और चिमना चाकर ने सम्भाल लिया।

लगी आषाढ बीता और सावन ने पदार्पण किया। चारों ओोर धरती पर हरियाली ही हरियाली दिखाई ताल-तलैया, ढा, खोचर आदि सभी पानी से लबालब भर गये। खेतों पर मंगल ही मंगल दिखलाई देने लगा। किसान बालक अलगोजा पर मीठी तान छेड़ने लगे। अल्ड युवक कजरी गाने लगे।

युवतियाँ घूमर नृत्य की ताल पर इल्लाने लगीं। होने वाली फसल के काल्पनिक भण्डार को सहजते सहजते वृद्ध प्रसन्नता के सागर में डुबकियां लगाने लगे । मोटे ताजे हृष्ट-पुष्ट ढ जहां तहां खेतों की मेड़ों पर, चारागाहों में अपने गले में बंधी घंटियों को बजाते हुए वर्षा का अभिनन्दन करने लगे।

गोभक्त तेजाजी - राजस्थान के लोक देवता
गोभक्त तेजाजी – राजस्थान के लोक देवता

खेतों पर दोपहर में विश्राम होता। किसान स्त्रियाँ अपने पतियों अथवा सम्बन्धियों के लिए छाछ राबड़ी का कलेवा लेकर ठीक समय पर उपस्थित हो जातीं। चारों छोर सतजुग ही सतजुग दिखाई देता। सूर्योदय से लेकर मध्याह्न तक काम करते करते तेजा छाछ राबड़ी और लूण्यां से भीगी बाजरे की रोटी लेकर आने वाली के स्वागत के लिए तैयार रहता ।

नित्य प्रति इसी प्रकार कठोर परिश्रम, पारिवारिक स्नेह तथा उल्लास के साथ दिन गुजरते रहे। एक दिन तेजाजी की भावज दोपहर में बहुत देर तक भोजन लेकर नहीं थाई थी। दूसरे लोग अपना अपना भोजन कर खेत के ढेलों पर विश्राम के लिए लेट गये। तेजा ने एक हलाई और मांडी। लेकिन अभी तक भी माभी नहीं प्राई थी।

दूसरे किसान लोग विश्राम करने के बाद पुनः काम में लग गये थे। तेजा ने न भोजन किया न आराम इस पर भी वह काम में लगा रहा। रोष से भरा हुआ तेजा यद्यपि काम में लगा हुआ था लेकिन मन-ही-मन में अपनी भाभी पर बड़ा नाराज हो रहा था । अन्ततः सिर पर रोटी की टोकरी लिए हुए भाभी ग्राई।

माभी ने बड़े मनोबल से अपने देवर को हेला मारा। तेजा भूखा था, अन्दर ही अन्दर क्रोध से लाल पीला हो रहा था । उसने जानबूझकर भाभी की आवाज की उपेक्षा की और अपने बैलों को हांकता रहा। भाभी ने जब पुनः भोजन करने के लिए हेला मारा तो तेजा ने क्रोध में कहा रोटी कोनों को फेंक दो, मुझे तो नहीं खानी है। यह भी रोटी लाने का कोई समय है।

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