गोभक्त तेजाजी – राजस्थान के लोक देवता

Kheem Singh Bhati
37 Min Read

राह चलते लोगों से एक आथ जगह रुक कर तेजा ने पनेर का सही पता पा लिया था। जब उसे अपना गन्तव्य प्रत्यन्त समीप दिखलाई दिया तो उसने घोड़ी की लगाम को और अधिक खींचा, घोड़ी हिनहिनाई और त्वरित गति से गांव के फलसे तक एक ही सांस में पहुंच गई। इस समय झालर बज रही थी।

ढोर गांव की ओर लौट रहे थे। गोधूलि से वातावरण धूमिल हो रहा था। पक्षी अपने अपने घोंसलों की ओर प्रयाण कर रहे थे। बछड़े अपनी माओं की प्रतीक्षा में रम्भा रहे थे। कोलाहल जंगलों से सिमट कर गांव में समा रहा था। फलसों पर सुनसान व्याप्त होता जा रहा था । तेजा को पनेर की सीमा पर प्रवेश करते ही वृक्षों से घिरा हुआ एक कुप्रा दिखाई पड़ा।

इस समय भी गांव की औरतें, जो खेत से देर से लौटी थीं, पानी भर रही थीं। तेजा को प्यास लगी हुई थी। घोड़ी भी जल पीने को आतुर दिखाई देती थी । पानी का स्थान जान कर घोड़ी ने अपना रुख कुए की ओर कर लिया । तेजा ने भी विरोध नहीं किया। घोड़ी से उतर कर एक स्नेह भरा हाथ फेर कर तेजा ने अपनी नीलड़ी को दुलारा ।

पानी भरने वाली युवतियां ठिठोली कर रही थीं। नवागन्तुक बटोही को देख कर कुछ सहमी, सिकुड़ी और अपनी चुनड़ियों को सम्भालने लगीं। युवतियों के समूह में से एक युवती ने तेजा को बांकी निगाहों से देखा। तेजा के बलिष्ठ शरीर एवं सुदृढ़ मांशपेशियों तथा तेजोदीप्त मुख मंडल को देखकर थोड़ी देर के लिए वह श्रात्म विस्मृति में खो गई ।

उसे लगा एक दिन ऐसा ही कोई बटोही सज संवर कर घोड़ी पर चढ़ कर आयेगा और गौणे की रस्म पूरी कर उसे अपने संग ले जाएगा। लज्जा की एक स्मित रेखा उसके आनन पर बिखर गई। अपने बाल विवाह के बिखरे तन्तुओं को विस्मृति के गर्त में बटोरने लगी। यकायक उसने सम्भल कर कुए में लटकते घड़े को भरा हुआ जान कर ऊपर खींचा।

प्यास से विह्वल तेजा ने उन युवतियों को सम्बोधित करते हुए कहा है सुन्दर पणिहारियो ! अपनी रेशम की डोर से खींच खींच कर हमें भी मीठा जल पिलायो । जात बिरादरी को पूछ कर जल पिलाने की प्रथा तब भी प्रचलित थी। इसलिए स्वभाववश एक युवती ने पूछा तुम कौन जाति के हो, कहां के रहने वाले हो, क्या नाम है ?

तेजा ने अपना गांव वंश तथा नाम बताया। बोलिया जाट का लड़का तेजा इस प्रकार जब अपना परिचय दे चुका तो उनमें से एक युवती जो उसकी सलहज थी, उसे पहचान गई और ननदोई के नाम से सम्बोधित किया। यह सम्बोधन तेजा को बहुत मधुर लगा । इसी को तो सुनने वह यहां आया था।

तेजा की सलहज ने पानी खींचती हुई अपनी ननद की ओर भेदभरी दृष्टि से देखा। जब तक वह किसी सुखद आश्चर्य में डूबी हुई आगन्तुक और अपनी भाभी के बीच चल रही मधुर वार्ता को सुन रही थी। अपने मन चीते का इस प्रकार अनायास आगमन जान कर वह अत्यन्य हर्षित हुई।

अपनी रेशमी चुनड़िया को सम्भालती पास में खड़ी हुई अन्य युवतियों की ओट में छिप गई । तेजाजी ने जल पिया और अपनी घोड़ी नीलड़ी को भी जल पिलाया। सल हज से शालीन ठिठोली करते हुए वह पुनः नीलड़ी पर सवार हो गया। अब ग्राम की गलियों में नीलड़ी ने ठुमक ठुमक कर चलना प्रारम्भ किया।

सवार पेचे के तुर्रे को लहराता हुआ ऊंची माथा किये देदीप्यमान होने लगा। उसके शरीर से एक तरुण कांति बिखर रही थी। संध्या के इस मटमैले वातावरण में भी वह अपूर्ण रूपवान मन को लुभाने वाले अपने सौन्दर्य से जन जीवन को आकृष्ट कर रहा था।

इस प्रकार नभोनीलिमा को चीरता हुम्रा पनेर की गुवाड़ियों को पीछे छोड़ता हुआ वह चांद-सा चेहरा पटेल की पोली की ओर बढ़ रहा था। जिस किसी ने उसके विषय में सुना, वह देखने की लालसा का संवरण नहीं कर सका।

हल्ला हो गया। सभी इस सौन्दर्य से परिपूर्ण युवक को देखने के लिए उमड़ पड़े। महिलाएं घर का कामकाज छोड़ कर गवाक्षों में खड़ी हो गईं। दरवाजे में खड़ी वधुएं अपने घूंघट को उठा उठा कर चन्द्रमुख को देखने में लीन थी। बच्चों का झुण्ड उस सवार को घेरे हुए श्रागे थौर पीछे दौड़ता जा रहा था ।

सभी के मुख से तेजा के रूप, शौर्य, प्रोज प्रोर शालीनता की महिमा गाई जा रही थी । बहुत से लोग पटेल को बधाई देने के लिए दौड़े। बादलों को चीरता हुआ जैसे सूर्य अपने गन्तव्य की ओर बढ़ता रहता है । उसी प्रकार तेजा सभी के मन को लुभाता हुआ भीड़ की ओर निकलता जा रहा था ।

क्या दूकानदार, क्या फूल बेचती हुई मालिने, क्या लड्डू बांधते हुए हलवाई, क्या पान का बीड़ा लगाती हुई पनवाड़िन प्रौर क्या शराब बेचती हुई कलालिन सभी तेजा को निहार रहेंगे ।

कोई मालग थुथकारा रै गेरू छै फुलड़ा, बेचती,
लाडूड़ा सनाता देखे छै हलवाई कंवर तेजे नै र,
लाडूड़ा सनाता देखे छै कन्दोई रं ।
कोई दूदड़लो बेचन्ती रै निरखै छै गोरी गूजरी।
पान बी लगाता निरखै छै पनवाड़न कंवर तेजै ने रे,
पान बी लगाती निरखे छै पनवाड़न है।

तेजा का उठा हुश्रा वक्षस्थल, विशाल बाहु, उन्नत माल, तेजयुक्त नैन बरबस ही लोगों की श्रद्धा अपनी ओर खींच रहे थे । नीलड़ी की पदचाप तेजा के पद भार से मानो बोझिल थी ।

धरती लचक रही थी और नीलड़ी एक एक पग सम्भल-सम्भल कर उठा रही थी, जिसमें नृत्य की भंकृति थी। इस पूर्व शोभा को देखने के लिए नक्षत्रों की खिड़कियों से देवता भी टकटकी लगा कर झांक रहे थे । उस रूप माधुर्य पर सौन्दर्य का देवता काम भी लज्जित था ।

तेजा का मन विभिन्न भावों के आलोड़न विलोड़न से उद्वेलित था। कभी उसे जन-समूह का अपार स्नेह गद्गद् करता था तो कभी ग्राम की शोभा उसके नेत्रों में उभर प्राती थी और कभी उसका मन अपनी अनदेखी पत्नी के रूप की कल्पना करके चंचल हो उठता था।

सोचता था प्रथम मिलन पर पत्नी को क्या कहूंगा, कैसे समझाऊंगा कि तुम तक पहुंचने में मैंने रास्ते के अकेलेपन को कैसे सहन किया है। पर उसे उस समय क्या कहूंगा जब वह पूछेगी कि इतने दिनों बाद कैसे सुधि ली ?

उसे कैसे सन्तोष दे पाऊंगा कि पनेर का कुछ मील रास्ता मेरे लिए हजारों कोस लम्बा हो गया था। सास ससुर आदि स्नेहिल सम्बन्धियों से किस प्रकार समुचित व्यवहार कर पाऊंगा । इसी उधेड़-बुन में तेजा अपने ससुराल के दरवाजे के सामने श्रा रुका।  घोड़ी से उतर कर श्रावाज दी, दरवाजा खोलो, पाहुने प्राये हैं। घर में बहुएं रोटियां बना रही थीं, सास गायें दुह रही थी।

ससुर बैलों को सानी दे रहा था। नीलड़ी की टापों की प्रावाज प्रौर तेजा के बेधड़क शब्दों ने गायों को बिचका दिया। दूध का बर्तन गाय की टांग से टकरा कर भन्नाटे की आवाज के साथ दूर जा पड़ा । सास ने अनजाने में ही नवागत प्रिय पाहुने को दो-चार कटु गालियां तक निकाल डालीं।

कोई घटना अप्रिय घटने से पहले ही वह सलहज जिसने तेजा को कुए पर पानी पिलाया था, सिर पर जल से भरा हुआ घडा लिए प्रा पहुंची। अपनी सास को प्रिय पाहुने का परिचय दिया। कितनी प्रसन्न थी सास और चुपचाप ही सारा वातावरण बदलता-सा जा रहा था। अपनी ननद को अत्यन्त मीठे स्वर में भाभी ने समझाया- ननदरानी सम्भलो, लेने वाले आ गये हैं।

वर्षों से जिनके लिए पलक-पावडे बिछाए हुए थी, जिनके लिए मन्दिरों में प्रचंना करती थी, दीपक जलाती थी, वे पाहुने प्रा गये हैं। उठो, मलिनता त्यागो । दखिनी चीर धारण करो । पांवों में पायल पहनो, माथे पर बोर बांधो, नाक में नथ पहनो, और इस प्रकार अपने मधुर करके यौवन से परदेशी पाहुने को लुभायो ।

तेजा की पत्नी सुन्दरी लाज से गड़ गई । कहती भी क्या ? भीतर ही भीतर प्रफुल्लित श्रौर बाहर से संकुचित सुन्दरी मन ही मन मिलन की बाट जोह रही थी। सुन्दरी को संकोच हुआ कि अभी जिस परदेशी को माता ने कटु वचन सुनाए वह उसके प्राणों का प्राण भरतार हैं।

अपनी मां की तरफ से क्षमा भी मांगे तो कैसे मांगे ? तेजा का प्रश्व सास के कटु वचनों को सुन कर कुछ आगे बढ़ गया था। सुन्दरी दुविधा में पड़ गई। मायके की लज्जा अपने रूडे पति को मनाने में बाधा उपस्थित कर रही थी । लोक लाज तोड़े भी तो कैसे तोड़े । जाते हुए परदेशी को किन शब्दों में सम्बोघित करके वापस लुभावे ।

वह शब्दहीना, लज्जावृता सुन्दरी जमीन को नाखूनों से कुरेदती हुई भ्रांचल को मुंह में दबाते हुए चित्रलिखित-सी खड़ी रही । सोच रही थी कोई अपना पराया मिले तो उसे अपने मन की बात कहूं । गांव में इतने बडे-बूढे हैं, कोई तो इस परदेशी को रोके। एक बार मुड़ कर देखने को तो कहे।

जब वह इसी प्रकार मन में संकल्प विकल्प कर रही थी, तभी उसकी सखी हीरा गूजरी उधर श्रा निकली । उसे देखते ही वह उसकी छाती से जा लिपटी, और बड़े अनुनय-विनय, मान-मनौवल, लज्जा-संकोच के साथ कहने लगी हीरा, तू मेरी बचपन की सखी है । मेरी माजायी बहिन से बढ़कर है, एक बार उस जाने वाले पाहुने को रोक दे ।

उसे लौटा ला। मैं जन्म भर तेरे चरणों की धूल माथे पर लगाती रहूंगी। तुझे दखिनी चीर मंगा कर दूंगी । हीरा चतुर थी, परिस्थिति को समझ गई। गांव की बेटी थी, इसलिए दौड़ने में भी उसे किसी प्रकार का संकोच नहीं हुआ। येन केन उसने नीलड़ी की वलगा अपने हाथों में थाम ली। घोड़ी को हीरा कहने लगी, तुझे दूध में भीगी दाल खिलाऊंगी।

तेरे प्रभालों को इत्र से सराबोर करूंगी। तेरे घुटने पर सोने की नेवरी बाधूंगी। गले में कंठा पहनाऊंगी। तू वापस लौट चल । जब घोड़ी अपने सवार की इच्छा के विरुद्ध टस से मस नहीं हुई तो हीरा ने अश्वारोही के सामने गले में पांचल डालकर हाथ पसार कर प्रार्थना की, जीजा, तुम वीर हो, पुरुष हो, बलवान हो, तुम्हारे जैसे व्यक्ति के होते हुए भी मेरे गुवाड़े के चोर मेरी गायों को ले गये।

इस गांव में कोई सुनने वाला नहीं है। तुम जैसा वीर भी यहां कोई और नहीं है । सव तरफ से निराश होकर मैं अब तुम्हारे सामने प्रांचल पसार कर यह भिक्षा मांगती हूं कि दुष्टों के पंजों से मेरी गायों का उद्धार करो, रक्षा करो। हीरा गूंजरी की आंखों से झर झर ग्रांसू भर रहे थे। दोनों प्रांखें सावन भादों की तरह बरस रही थीं ।

Share This Article
kheem singh Bhati is a author of niharika times web portal, join me on facebook - https://www.facebook.com/ksbmr