धर्म, अध्यात्म और आस्था की राजधानी काशी इस समय अपने दिव्य उत्सव की तैयारी में जुटी हुई है। 5 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा की शाम गहराने पर गंगा के सभी घाटों पर दीयों की सुनहरी लहरें चमकेंगी। 84 घाटों की यह रोशनी एक साथ जलेगी और गंगा के दोनों तट स्वर्गलोक में बदल जाएंगे। इस बार देव दीपावली पर पूरे शहर में लगभग 25 लाख दीयों की ज्योति एक साथ प्रज्वलित होगी। देव दिवाली का त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के प्रदोष काल में मनाया जाता है।
काशी विश्वनाथ न केवल देश, बल्कि विश्वभर के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुका है। यहां साल भर भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है। कार्तिक पूर्णिमा प्रदोष काल वह समय होता है, जो संध्या काल के पहले और रात्रि काल के आरंभ में पड़ता है। यह अवधि विशेष धार्मिक अनुष्ठानों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है और इसी समय देव दिवाली भी मनाई जाती है। इस दिन लोग घाटों पर दीपों की बाती जलाते हैं। इस बार देव दीपावली 5 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी।
कार्तिक पूर्णिमा की तिथि 4 नवंबर रात 10:36 बजे से शुरू होगी और 5 नवंबर शाम 6:48 बजे समाप्त होगी। पर्यटन विभाग और स्थानीय समितियों की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं। वाराणसी पर्यटन विभाग के संयुक्त निदेशक दिनेश कुमार के अनुसार, इस बार विभाग ने 10 लाख दीयों की व्यवस्था की है, जबकि केंद्रीय देव दीपावली समिति ने 15 लाख दीये जलाने का संकल्प लिया है। इनमें से लगभग 3 लाख दीये गंगा पार रेत पर जलेंगे, जिससे नदी के दोनों किनारे सुनहरी पट्टी की तरह जगमगाएंगे।
दीयों के साथ घाटों पर सजावट, फूलों के मंडप और पारंपरिक संगीत का माहौल और भी दिव्य बनाएगा। लोग घाटों के साथ-साथ अपने घरों और छतों पर भी दीप सजाने की तैयारी में जुटे हैं। चेतसिंह घाट इस बार आकर्षण का केंद्र रहेगा, जहां 25 मिनट का लेजर शो आयोजित होगा। इसकी थीम शिव, गंगा और देव दिवाली पर आधारित है। प्रोजेक्शन लेजर के जरिए दिखाया जाएगा कि कैसे भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया और इस विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने गंगा तट पर दीप जलाकर इस पर्व की शुरुआत की।
यह शो 3 बार चलेगा ताकि अधिक से अधिक लोग इसे देख सकें। काशी का आसमान इस दौरान रंग-बिरंगी किरणों से सजा रहेगा। इस दिन इलेक्ट्रिक फायर क्रैकर शो भी होगा। यह आयोजन काशी विश्वनाथ धाम के सामने गंगा पार रेत पर डेढ़ किलोमीटर के क्षेत्र में किया जाएगा। भगवान शिव की थीम पर तैयार यह शो 10 मिनट तक चलेगा, जिसमें 200 से 250 मीटर की ऊंचाई तक रंगीन आतिशबाजी होगी। दशाश्वमेध घाट पर महाआरती देव दिवाली की शाम का दृश्य सबसे अलौकिक होता है। यहां रिद्धि-सिद्धि संग 21 बटुक ब्राह्मण मां गंगा की महाआरती करते हैं।
दीप, धूप, घंटियों की झंकार और ‘हर हर गंगे’ के जयकारों से पूरा वातावरण गूंज उठता है। इस दौरान गंगा की लहरों पर तैरते दीप ऐसे लगते हैं, जैसे स्वर्ग के तारे धरती पर उतर आए हों। वाराणसी में यह त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जहां लोग घाटों पर दीपों की बाती जलाते हैं। यहां पर स्वर्गीय देवताओं की प्रसन्नता के रूप में इस दिन देवी गंगा के उत्तरवाहिनी द्वारा निकले गए पांच अमृत की बूँदों को याद किया जाता है।
इस दिन ये दृश्य देखकर ऐसा लगता है मानों स्वर्ग से सभी देवी-देवता नीचे उतर आएं और दिवाली मना रहे हों। पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा को भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। जिसके बाद देवताओं ने धन्यता जताते हुए दीपों का जलाना शुरू किया था। तब से देव दीपावली का त्योहार मनाया जाता है, जिसमें दीपों की रौशनी और पवित्र नदियों में स्नान और दान की महत्ता होती है। यह एक प्रसन्नता और शुभ अवसर होता है, जिसमें लोग नदियों के किनारे जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही घाटों को दीपों से सजाते हैं।
बच्चे आतिशबाजी करते हैं।


