वाराणसी की गलियों में इस समय देव दीपावली की रौनक है। घाटों पर सफाई चल रही है और गंगा किनारे दीपों की कतारें सजाई जा रही हैं। इस पर्व के दौरान काशी नगरी देवताओं के स्वागत में दीपों से जगमगा उठती है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा की रात को मनाए जाने वाले इस पर्व में देश-विदेश से लोग आते हैं। इस दिन गंगा किनारे जलते दीप हवा में झिलमिलाते हैं, जिससे ऐसा लगता है मानो देवता धरती पर उतर आए हों।
यदि आप घाट पर नहीं जा पा रहे हैं, तो आज हम आपको बताएंगे कि घर पर कैसे देवताओं का स्वागत कर सकते हैं। घर में दीप जलाने के लिए मंदिर, मुख्य द्वार, रसोईघर, तुलसी के पौधे के पास और आंगन के ईशान कोण में दीप जलाना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार, इन स्थानों पर दीप जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। घर के हर कोने में रोशनी भरने से देवता वहां निवास करते हैं। देव दीपावली के दिन सुबह स्नान का विशेष महत्व है।
शास्त्रों के अनुसार, इस दिन गंगा स्नान से सभी पापों का नाश होता है। स्नान के बाद भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। घर के मंदिर में घी का दीपक जलाना शुभ माना गया है। इस दिन श्रद्धा से जलाया गया दीप साधक के जीवन से अंधकार और दुःख को दूर करता है। दीप जलाने की संख्या का भी महत्व है। परंपरा के अनुसार, इस दिन विषम संख्या में दीप जलाए जाते हैं जैसे 5, 7, 11, 21, 51 या 108 दीपक।
प्रदोष काल यानी शाम 5:15 बजे से 7:50 बजे तक का समय दीपदान के लिए सबसे शुभ है। यदि आप भगवान शिव की विशेष पूजा कर रहे हैं, तो 8 या 12 मुख वाले दीप जलाने का विधान है। इस बार देव दीपावली के दिन सिद्धि योग बन रहा है, जो सुबह 11:28 बजे तक रहेगा। यह योग हर कार्य में सफलता और शुभ फल देने वाला माना जाता है। सिद्धि योग में किया गया दीपदान कई जन्मों तक का कल्याण करता है।
कार्तिक पूर्णिमा इस बार शाम 6:48 बजे तक रहेगी और इस दिन अश्विनी तथा भरणी नक्षत्रों का संगम बन रहा है। यह संगम स्वास्थ्य और नई शुरुआत का प्रतीक है। स्नान, दान और दीप प्रज्वलन करने से आरोग्य लाभ और मन की शांति प्राप्त होती है। देव दीपावली 2025 के दिन सूर्य तुला राशि में और चंद्र मेष राशि में विराजमान रहेंगे। यह संयोजन संतुलन और उत्साह का प्रतीक है। जब शाम को घाटों पर लाखों दीपक जलते हैं, तो वह हर भक्त के मन को आलोकित कर देते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक दैत्य का वध किया था। उस विजय के उपलक्ष्य में सभी देवताओं ने धरती पर दीप जलाए थे। तभी से यह दिन देव दीपावली के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वाराणसी इस दिन हजारों दीपों की रोशनी से जगमगाता है।


