जब देवी दुर्गा से प्रकट हुई कालरात्रि देवी का स्वरूप

Tina Chouhan

जयपुर। जब असुरों ने त्रिलोक में आतंक फैलाया, तब देवी दुर्गा ने अपने शरीर से एक तीव्र ज्वाला प्रकट की। उसी से कालरात्रि का जन्म हुआ। इनका स्वरूप अत्यंत भयंकर बताया गया है। काला वर्ण, बिखरे केश, गर्दन पर माला, चार भुजाओं में लोहे का खड्ग और वज्र धारण करने वाली इनकी विशेष पहचान है। यह उग्रता केवल दुष्टों के लिए है। भक्तों को माता कालरात्रि सदैव शुभ फल देती हैं। इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। सप्तमी तिथि पर माता कालरात्रि अपने अत्यंत उग्र और वीर स्वरूप के लिए जानी जाती हैं।

इन्हें विनाशकारी शक्तियों का नाश करने वाली देवी के रूप में स्मरण किया जाता है। माता कालरात्रि को समस्त दानवों, असुरों, भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करने वाली जगज्जननी के रूप में जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि राक्षस शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज के संहार में माता कालरात्रि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नवरात्र पर्व पर माता कालरात्रि की उपासना न केवल धार्मिक आस्था का विषय है, बल्कि यह मानव जीवन में सत्य, साहस और न्याय की स्थापना का प्रेरणास्रोत भी है।

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