तखतगढ़ नगरपालिका से गायब हुई महत्वपूर्ण फाइलें फर्जी पट्टों का मामला फिर चर्चा में, कार्रवाई के इंतजार में जनता सुमेरपुर उपखंड की दूसरी सबसे बड़ी नगरपालिका तखतगढ़ एक बार फिर विवादों के घेरे में है। सूत्रों के अनुसार, “प्रशासन शहरों के संग” अभियान के दौरान नगर पालिका से कई महत्वपूर्ण पत्रावलियां रहस्यमयी तरीके से गायब हो गई हैं। इनमें वह फाइलें भी शामिल हैं, जो कस्बे के गंवई तालाब की आगोर भूमि पर नियमों के विपरीत जारी किए गए फर्जी पट्टों से जुड़ी हुई हैं — वह मामला जिसने एक समय प्रदेश स्तर पर हलचल मचा दी थी।
एक साल बाद भी नहीं हुई कार्रवाई इन फर्जी पट्टों के संबंध में 12 जनवरी 2024 को तखतगढ़ थाने में मुकदमा दर्ज हुआ था, लेकिन लगभग एक वर्ष बीत जाने के बावजूद जांच आज तक अधर में लटकी हुई है। पुलिस और प्रशासनिक स्तर पर जांच की गति शून्य बनी हुई है, जिससे आरोपियों के हौसले और भी बुलंद बताए जा रहे हैं।
नगरवासी यह सवाल उठाने लगे हैं कि — “क्या इस पूरे मामले में किसी बड़े राजनैतिक संरक्षण की भूमिका छिपाई जा रही है?” सभा में उठा था मुद्दा — आश्वासन अब तक अधूरा 18 नवंबर 2024 को हुई नगरपालिका की साधारण सभा बैठक में यह मामला फिर से गरमा गया था। सभा में पूर्व पालिका अध्यक्ष अंबादेवी रावल और विपक्षी पार्षदों ने कैबिनेट मंत्री एवं स्थानीय विधायक जोराराम कुमावत के समक्ष फर्जी पट्टों को निरस्त करने और जिम्मेदारों पर कार्रवाई की मांग रखी थी।
मंत्री कुमावत ने उस समय स्पष्ट कहा था — “फर्जी पट्टे रद्द होंगे, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।” लेकिन एक वर्ष गुजर जाने के बाद भी न तो जांच आगे बढ़ी, न ही किसी अधिकारी या कर्मचारी पर ठोस कार्रवाई हुई। यह स्थिति प्रशासनिक उदासीनता का प्रतीक बनती जा रही है। भ्रष्टाचार के अन्य मामलों पर भी उठ चुके हैं सवाल नगरपालिका में भ्रष्टाचार कोई नया विषय नहीं है। इसी बोर्ड के उपाध्यक्ष मनोज नामा ने एक वर्ष पूर्व पालिका में व्याप्त अनियमितताओं, आय-व्यय में पारदर्शिता की कमी और फर्जी कार्यों के खिलाफ एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन भी किया था।
हाल ही में उन्होंने पुनः यूडीएच मंत्री, स्वायत्त शासन निदेशक और जोधपुर उपनिदेशक को ज्ञापन सौंपकर खांचा भूमि आवंटन, टेंडर प्रक्रिया और कोटेशन कार्यों में गड़बड़ियों की जांच की मांग की है। विपक्ष की चुप्पी भी जनचर्चा का विषय पालिका में इतने गंभीर मामलों के बावजूद विपक्ष की खामोशी लोगों के बीच संदेह और निराशा का कारण बन रही है। जनता का कहना है कि विपक्ष को जनहित के मुद्दों पर सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, लेकिन वर्तमान में विपक्ष की निष्क्रियता ने भी पूरे नगर को निराश किया है।
जनता की उम्मीदों पर पानी, पारदर्शिता सवालों में नगरवासी तखतगढ़ पालिका से विकास और पारदर्शिता की उम्मीदें लगाए बैठे थे, परंतु भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद ने इन उम्मीदों को आघात पहुंचाया है। कई पार्षद और सत्ताधारी गुट से जुड़े नेता स्वयं ठेकेदार बनकर पालिका के ठेकों में लाभ उठा रहे हैं। इससे नगर विकास के मूल उद्देश्य पर ही प्रश्नचिह्न लग गया है। जनता की आवाज — जवाब दो या हटो!
जनता अब सवाल पूछ रही है — “जब फर्जीवाड़ा साबित हो चुका है, तो कार्रवाई में देरी क्यों?” “जनप्रतिनिधि जनता के हैं या ठेकेदारों के?” नागरिकों का कहना है कि यह समय है जब नगर की जनता खुद सजग बने और ऐसे जनप्रतिनिधियों को पहचानें जो जनसेवा नहीं, स्वार्थ की राजनीति करते हैं। आगामी चुनावों में जनता को यह तय करना होगा कि क्या वे भ्रष्टाचार और दबाव की राजनीति को फिर से सत्ता सौंपेंगे, या फिर एक पारदर्शी और जवाबदेह नगरपालिका की नींव रखेंगे।
निष्कर्ष तखतगढ़ नगरपालिका का यह मामला केवल फाइलों के गायब होने का नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक जवाबदेही और प्रशासनिक ईमानदारी की परीक्षा है। यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मुद्दा आने वाले समय में राजनीतिक और जनआंदोलन का रूप भी ले सकता है।


