राजधानी लखनऊ में सोमवार को भारतीय किसान यूनियन (राष्ट्रीय) के बैनर तले किसानों ने लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। हल और हाथों में डंडा लेकर बड़ी संख्या में महिला और पुरुष किसान एलडीए के मुख्य द्वार पर पहुंचे और 13 सूत्रीय मांगों को लेकर टेंट लगाकर धरने पर बैठ गए। प्रदर्शन के दौरान किसानों ने “जो ना माने झंडा से, उसे समझाओ डंडा से” जैसे नारे लगाए और प्रशासन के खिलाफ जमकर विरोध जताया। किसान नेता अशोक यादव ने बताया कि किसानों को पिछले 40 वर्षों से लगातार गुमराह किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि “1984 में हमारी जमीन लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहित कर ली गई थी। उस समय 84 पैसे प्रति वर्गफुट के हिसाब से मुआवजा तय हुआ था। बाद में वार्ता के बाद यह दर ₹2.50 तय की गई। कुछ किसान कोर्ट गए तो मुआवजा ₹4.60 तय हुआ और 2016 में कोर्ट ने सभी किसानों को ₹4.60 की दर से भुगतान करने का आदेश दिया।
लेकिन आज तक एलडीए ने यह मुआवजा नहीं दिया, यह कहते हुए कि उनके पास पर्याप्त धनराशि नहीं है।” उन्होंने आगे कहा कि भूमि अधिग्रहण के समय किसानों से कई वादे किए गए थे — प्रत्येक परिवार को नौकरी, आवास, गांव का विकास और किसान भवन का निर्माण — लेकिन आज तक एक भी वादा पूरा नहीं हुआ। प्रदर्शन कर रहे किसानों ने बताया कि “लखनऊ का किसान आज दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर है। तीन श्मशान घाटों में से केवल एक ही बचा है।
हमारी महिलाएं आज दूसरों के घरों में झाड़ू-पोछा करने पर मजबूर हैं।” किसानों ने कहा कि किसान प्रधान देश में अन्नदाता की यह स्थिति बेहद शर्मनाक है कि उन्हें दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। किसान नेता अशोक यादव ने बताया कि “24 सितंबर को हमने डीएम ऑफिस का घेराव किया था। उस समय प्रशासन ने वादा किया था कि एक सप्ताह में समस्या का समाधान होगा।
लेकिन जब एलडीए कार्यालय में बातचीत करने पहुंचे, तो किसी ने भी हमारी बात नहीं सुनी।” उन्होंने आरोप लगाया कि एलडीए और जिला प्रशासन के अधिकारी लगातार किसानों को गुमराह कर रहे हैं। “40 वर्षों से हमारे बुजुर्ग, महिलाएं और परिवार न्याय के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। कई लोगों की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन आज तक न्याय नहीं मिला।”