जयपुर। एसएमएस हॉस्पिटल के ट्रोमा सेंटर में आगजनी की घटना में आठ लोगों की जान चली गई। इस घटना ने अस्पताल के फायर फाइटिंग सिस्टम के संचालन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर फायर फाइटिंग सिस्टम को सही तरीके से प्रबंधित किया जाता, तो आज आठ मरीजों की जान समय पर बचाई जा सकती थी। घटना स्थल की जांच और प्रत्यक्षदर्शियों से बातचीत करने पर पता चला कि स्टोर रूम में लगे स्मॉक डिटेक्टर ने सही से काम नहीं किया, जिसके कारण अलार्म सिस्टम समय पर सक्रिय नहीं हुआ।
पुरानी तकनीक का फायर फाइटिंग सिस्टम होने के कारण आग बढ़ती चली गई और पूरे आईसीयू में फैल गई। अस्पताल के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, यहां जो सिस्टम लगा है, उसमें स्मॉक अलार्म काफी देरी से बजा, जिसके कारण स्टोर में लगी आग का किसी को पता नहीं चला। जब स्टोर रूम में आग बढ़ गई और उसका धुआं आईसीयू रूम तक फैल गया, तब स्टाफ और वहां भर्ती मरीजों के परिजनों को पता चला और अफरा-तफरी मच गई। प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि स्मॉक अलार्म समय पर बजा तभी स्टाफ को आग की सूचना मिली।
जहां आग लगी, वह स्टोर रूम वार्ड का हिस्सा था, जहां मरीजों को भर्ती करने के लिए बेड लगाए जाने थे। लेकिन बाद में इसे स्टाफ ने स्टोर रूम में तब्दील कर दिया। इसके बाद यहां दवाइयों के बॉक्स, गत्ते और अन्य कागजात रख दिए गए। इस कारण जब यहां आग लगी तो कबाड़ के कारण आग तेजी से बढ़ गई और फैलते-फैलते आईसीयू वार्ड तक आ गई। आईसीयू में पुरानी तकनीक का फायर फाइटिंग सिस्टम लगा है।
ऑटोमेटिक वाटर सप्लाई के लिए फायर स्प्रिंकलर सिस्टम के बजाय मैनुअल सिस्टम लगे होने के कारण आग लगने के तुरंत बाद पानी की सप्लाई नहीं हुई। इसके अलावा, यहां तैनात स्टाफ और सुरक्षा गार्ड को भी यह नहीं पता था कि इस मैनुअल सिस्टम को वाटर सप्लाई के लिए कहां से कनेक्टिविटी दी जा सके।