फ्लामेंको: स्पेन से भारत तक की नृत्य यात्रा

स्पेन की गलियों में यदि आप गए हों, तो वहां की धुनों में एक अलग गर्माहट और जुनून महसूस होगा, जिसे फ्लामेंको की आत्मा कहा जाता है। इसमें ताल, ताली, कदमों की थाप और चेहरे के हाव-भाव के जरिए जो जज़्बात झलकते हैं, वे सिर्फ नृत्य नहीं, बल्कि एक पूरी कहानी कहते हैं। फ्लामेंको केवल डांस नहीं, बल्कि स्पेन की पहचान है, जो सदियों से बनी हुई है। फ्लामेंको की शुरुआत स्पेन के दक्षिणी क्षेत्र अंडालूसिया से मानी जाती है। यहां की मिट्टी, लोग और उनकी भावनाएं इस नृत्य को जन्म देने में सहायक रही हैं।

यह एक ऐसा डांस फॉर्म है, जिसमें नृत्य, गायन और संगीत तीनों का समावेश होता है। इसे देखने वाला हर व्यक्ति इसे महसूस करता है। जब कोई फ्लामेंको डांसर मंच पर आता है, तो उसकी हर थाप, हर घुमाव और हर नजर के पीछे एक कहानी छिपी होती है, जिसमें प्यार, दर्द या कभी-कभी विद्रोह भी शामिल होता है। यह डांस केवल रटे-रटाए मूवमेंट्स का खेल नहीं, बल्कि भावनाओं का ज्वालामुखी है जो हर बीट के साथ फूटता है। भारत से भी इसका गहरा नाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि फ्लामेंको की जड़ें भारत तक फैली हुई हैं।

15वीं से 18वीं सदी के बीच जब जिप्सी समुदाय भारत से यूरोप की ओर गया, तो उन्होंने अपने संगीत और ताल की परंपराएं साथ ले गए। जब वे स्पेन पहुंचे, तो उनका संगीत वहां की लोकधुनों और अरबिक सुरों से मिल गया, जिससे फ्लामेंको की नींव बनी। इतिहासकारों के अनुसार, 711 ईस्वी में अरब लोग जब स्पेन पहुंचे, तो उन्होंने अपने संगीत, कविता और वाद्ययंत्रों से अंडालूसिया की संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया। जिप्सियों की लय और भावनाओं का यह मेल ऐसा बैठा कि आज भी फ्लामेंको में भारत, अरब और यूरोप की झलक एक साथ दिखाई देती है।

फ्लामेंको का जादू कैसे बनता है? कांते (गायन): यह फ्लामेंको की आत्मा है। गायक अपनी आवाज़ से ऐसी भावनाएं जगाता है जो सीधे दिल में उतर जाती हैं। तोके (गिटार): गिटार की तारों की थरथराहट पूरे नृत्य को लय देती है। बैले (डांस): यहां असली जादू आता है। नर्तक अपनी आंखों, हाथों और पैरों से वह सब कहते हैं जो शब्दों में नहीं कहा जा सकता। महिलाएं आमतौर पर फ्रिल लगी लंबी ड्रेस, फूलों से सजे बाल और हाथ में पंखा लेकर मंच पर आती हैं।

उनके हर घूमने और थाप के साथ उनके कपड़ों की लहरें भी नृत्य करती हैं। वहीं, पुरुष तंग पैंट, जैकेट और टोपी में आत्मविश्वास से भरे नजर आते हैं। ‘फ्लामेंको’ की दिलचस्प कहानी यह है कि इस शब्द का इस्तेमाल पहली बार 18वीं सदी में हुआ था। माना जाता है कि यह अरबी शब्द ‘फेलाह-मेंगु’ से निकला है, जिसका अर्थ “भटकने वाला इंसान” होता है। यह नाम उन जिप्सी लोगों से जुड़ा था, जो एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते थे। आज फ्लामेंको केवल स्पेन तक सीमित नहीं है, यह एक वैश्विक कला बन चुकी है।

अमेरिका, जापान, फ्रांस और भारत में भी फ्लामेंको के कलाकार और प्रेमी मिलते हैं। यह अब जैज़, पॉप और फ्यूजन म्यूज़िक का भी हिस्सा बन चुका है। स्पेन के सेविल, कोर्डोबा और ग्रेनेडा शहर आज भी फ्लामेंको के केंद्र माने जाते हैं। यहां हर गली में शाम ढलते ही गिटार की धुनें गूंजती हैं। कोई न कोई डांसर अपने जज़्बातों को कदमों की थाप में ढालता नजर आता है। 2010 में यूनेस्को ने फ्लामेंको को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया। फ्लामेंको दरअसल उस जुनून का प्रतीक है जो इंसान के भीतर छिपा होता है।

Share This Article
Vikram Singh Bhati is author of Niharika Times web portal
Exit mobile version