जबरन धर्मातरण गंभीर मुद्दा, इसे राजनीतिक न बनाएं : सुप्रीम कोर्ट

Sabal Singh Bhati
5 Min Read

नई दिल्ली, 9 जनवरी ()। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को जबरन धर्मातरण के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की मदद मांगी।

न्यायमूर्ति एम.आर. शाह की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि धर्म परिवर्तन एक गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दा है और इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए।

बल प्रयोग या प्रलोभन के जरिए धर्म परिवर्तन के खिलाफ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर पीठ में शामिल न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार ने एजी की मदद मांगी।

न्यायमूर्ति शाह ने एजी से कहा : यह धर्मातरण का मामला है। जबरन धर्म परिवर्तन, प्रलोभन या कुछ अन्य चीजें, ये आरोप हैं .. हम कुछ भी नहीं कह रहे हैं, यह वास्तव में हुआ है या नहीं, हम अभी इस पर विचार कर रहे हैं। हम भारत के अटॉर्नी जनरल के रूप में इस पर आपकी मदद चाहते हैं।

उन्होंने पूछा, ऐसे मामले में क्या किया जाना चाहिए? .. स्वतंत्रता के अधिकार, धर्म के अधिकार और प्रलोभन द्वारा किसी भी चीज को धर्मातरित करने के अधिकार में अंतर है। अगर ऐसा हो रहा है, तो क्या किया जाना चाहिए .. आगे क्या सुधारात्मक उपाय किए जा सकते हैं.. हम एजी से सहायता चाहते हैं।

तमिलनाडु सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने कहा कि यह याचिका राजनीति से प्रेरित है। उन्होंने तर्क दिया कि राज्य में इस तरह के धर्मातरण का कोई सवाल ही नहीं है।

इस पर पीठ ने कहा, आपके इस तरह उत्तेजित होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। अदालती कार्यवाही को अन्य चीजों में मत बदलिए। हमें पूरे देश की चिंता है.. अगर यह आपके राज्य में कुछ भी गलत नहीं हो रहा है, तो अच्छा है।

इसे राजनीतिक मत बनाइए।

अदालत उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें केंद्र और राज्यों को फर्जी धर्मातरण को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई है। शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई सात फरवरी को निर्धारित की है।

शीर्ष अदालत ने उपाध्याय द्वारा अपने नाम पर दायर जनहित याचिका पर वकीलों की आपत्ति के रूप में कारण शीर्षक का नाम बदलकर पुन: धार्मिक रूपांतरण का मुद्दा कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने 5 दिसंबर को कहा था कि जबरन धर्मातरण बहुत गंभीर मुद्दा है और इस बात पर जोर दिया था कि दान का स्वागत है, लेकिन दान का उद्देश्य धर्मातरण नहीं होना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने केंद्र को धर्मातरण विरोधी कानूनों और अन्य प्रासंगिक सूचनाओं के संबंध में विभिन्न राज्य सरकारों से आवश्यक प्रतिक्रिया प्राप्त करने के बाद एक विस्तृत जवाब दाखिल करने की अनुमति दी।

गुजरात सरकार ने अपनी लिखित प्रतिक्रिया में कहा, यह विनम्रतापूर्वक पेश किया गया है कि 2003 का अधिनियम (गुजरात धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2003) एक वैध रूप से गठित कानून है और विशेष रूप से 2003 के अधिनियम की धारा 5 का प्रावधान है, जो पिछले 18 वर्षो से क्षेत्र में है और इस प्रकार कानून का एक वैध प्रावधान है, ताकि 2003 के अधिनियम का उद्देश्य पूरा हो सके और समाज के आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गो सहित महिलाओं और पिछड़े वर्गो के पोषित अधिकारों की रक्षा करके गुजरात राज्य के भीतर सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखी जा सके।

राज्य सरकार ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट ने 2003 के अधिनियम की धारा 5 के संचालन पर रोक लगा दी, जो वास्तव में एक व्यक्ति को अपनी इच्छा से एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित होने के लिए एक सक्षम प्रावधान है।

इसने कहा कि हाईकोर्ट ने यह नहीं माना कि साल 2003 के अधिनियम की धारा 5 के संचालन पर रोक लगाने से अधिनियम का पूरा उद्देश्य प्रभावी रूप से विफल हो गया। 2003 के कानून को मजबूत करने के लिए गुजरात धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2021 पारित किया गया था।

उपाध्याय ने धोखे से, धमकी, उपहार और मौद्रिक लाभों का प्रलोभन देकर किया जाने वाला धर्मातरण अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन है।

एसजीके/एएनएम

Share This Article
Sabal Singh Bhati is CEO and chief editor of Niharika Times