कोटा। सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी की सिफारिश के बाद अब वन विभाग ने राजस्थान में कोनोकार्पस पर पूर्णत: बैन लगा दिया है। विभाग ने अपने महकमे में कोनोकार्पस प्रजाति के पौधों का आयात-निर्यात, पौधारोपण और वन नर्सियों में इसके पौध उत्पादन पर पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है। इस संबंध में मुख्य वन संरक्षक एसआर वेंकटश्वर मूर्थी ने प्रदेश के सभी मुख्य वन संरक्षकों को निर्देश जारी किए हैं। इसके बाद से सम्पूर्ण वन महकमें में कोनोकार्पस पूर्णत: प्रतिबंधित हो गया है।
इसके बावजूद यदि वन नर्सियों में कोनोकार्पस का आयात-बेचना या पौध उत्पादन होता है तो संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। गौरतलब है कि दैनिक नवज्योति ने 30 सितम्बर को जिस पौधे को 4 राज्यों ने बैन किया उसे चंबल रिवर फ्रंंट और ऑक्सीजोन में जमकर लगाया…, 2 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने माना, कोनोकार्पस स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए खतरनाक…, शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था। इसके बाद वन विभाग ने इस प्रजाति के पौधों का राज्य में आयात-बेचान एवं पौधरोपण पर प्रतिबंध लगाया।
आयात-निर्यात व पौधारोपण पर बैनमुख्य वन संरक्षक-आयोजना जयपुर द्वारा वन अधिकारियों को जारी किए पत्र में सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय सशक्त समिति की सिफारिशों का उल्लेख किया गया है। पत्र में बताया गया है कि कोनोकार्पस प्रजातियों के पौधों को राज्य में आयात, बेचना एवं पौधारोपण पर रोक लगाने के संबंध में भारत सरकार पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा पत्र जारी किया गया है। केंद्रीय सशक्त समिति (सीईसी) ने सर्वोच्चय न्यायलय को कोनोकार्पस प्रजाति के कारण उत्पन्न पर्यावरणीय और पारिस्थितिक खतरे की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है।
ऐसे में इसके आयात-निर्यात एवं पौधारोपण पर पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करने के लिए और उनके स्थान पर देसी प्रजातियों के पौधे लगाने को प्रोत्साहन करने के वन अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं। सरकारी विभागों को पाबंद करेगा वन विभागवन विभाग अपने महकमे में कोनोकार्पस को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है। अब अन्य सरकारी विभागों को भी इस प्रजाति के पौधे नहीं लगाने के लिए पाबंद करेगा। वहीं, पहले से लगाए गए पेड़-पौधों को स्थानीय प्रजातियों के पौधों से रिप्लेस करवाने के लिए जागरूक करेगा।
नर्सियों में 100 से 150 में बिक रहा कोनोकार्पसशहर की कई निजी नर्सियों में कोनोकार्पस जमकर बिक रहा है। 3 से 4 फीट के पौधे 100 से 150 रुपए में बिक रहा है। वहीं, 2 फीट के पौधे 70 से 100 रुपए में बेचा जा रहा है। इसके अलावा 6 फीट के पौधे को 300 से 350 रुपए में बिक रहा है। नाम न छापने की शर्त पर नर्सरी संचालक ने बताया कि राजस्थान में इस पौधे की डिमांड ज्यादा है। यह अन्य पौधों की तुलना में बहुत तेजी से ग्रोथ करता है।
इसको ज्यादा पानी देने की जरूरत भी नहीं होती है और दिखने में अच्छा होता है। लोग फार्म हाउस पर ज्यादा लगा रहे हैं। हरियाली के नाम पर लगा दिए खतरनाक पौधेसौंदर्यीकरण व हरियाली के नाम पर कोटा विकास प्राधिकरण ने शहर की प्रमुख सड़कों के डिवाइडरों व सार्वजनिक स्थानों पर कोनोकार्पस जैसे खतरनाक पौधे लगाए दिए, जो वर्तमान में वृक्ष बन गए। यहां से गुजरने के दौरान इसके फूलों के परागण हवा के साथ उड़ते हुए सांस के जरिए शरीर में पहुंचते हैं और लोगों को अस्थमा का मरीज बना रहे हैं।
कोटा में गत वर्षों में हरियाली के नाम पर इन पौधों को खूब लगाया गया। सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी की सिफारिश के बाद वन विभाग ने गाइड लाइन जारी कर कोनोकार्पस को अपने महकमे में पूरी तरह से बैन कर दिया। इसके आयात-निर्यात, पौधारोपण और नर्सियों में पौध उत्पादन पर भी पूर्णत: प्रतिबंधित कर दिया है। हम अन्य सरकारी विभागों को इस प्रजाति के पौधे नहीं लगाने को पत्र लिखकर पाबंद व जागरूक कर रहे हैं। इस संबंध में जिला कलक्टर और केडीए सचिव को पत्र लिखा है।
-अनुराग भटनागर, डीएफओ वन्यजीव विभाग कोटा पर्यावरणविद् बोले- जो पहले से लगे उसे तुरंत हटाएंकोनोकार्पस बहुत ही खतरनाक है। ऑक्सीजोन पार्क के निर्माण के दौरान लगाए जाने पर भी विरोध किया था। सीवी गार्डन को सेहत का खजाना माना जाता है। बड़ी संख्या में लोग सुबह-शाम वॉक पर आते हैं, जो सेहत के साथ बीमारियां भी साथ लेकर जा रहे हैं। यहां बड़ी संख्या में कोनोकार्पस लगाए हुए हैं, जो लोगों को सांस संबंधित बीमारियों की ओर धकेल रहा है। वहीं, चंबल रिवर फ्रंट के भी यही हालात है।
अब सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने भी इसे बैन करने की सिफारिश कर दी है। ऐसे में पहले से लगे कोनोकार्पस को तुरंत हटाकर उनकी जगह स्थानीय पौधे लगाए जाना चाहिए।- डॉ. सुधीर गुप्ता, पर्यावरणविद् एवं वन्यजीव प्रेमी कोनोकार्पस के अलावा और भी बाहरी पौधे हैं, जो स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण के लिए भी हानिकारक हैं। प्राइवेट नर्सियों में विदेशी पौधे जमकर बेचे जा रहे हैं, जबकि ईको सिस्टम के अनुकूल पेड़-पौधों से हमारा देश समृद्ध है। उन्हें प्रोत्साहन देकर लगाया जाना चाहिए। इसमें फोरेस्ट की नर्सरी बड़ी भूमिका निभा सकती है।
वन विभाग ने इस साल अकेचा टोटलिस्ट नामक पौधे को बैन किया है। वहीं, विभाग ने 135 प्रजातियों के स्थानीय पौधों को बढ़ावा देने पर जोर दिया है। इस तरह के प्रयास सराहनीय प्रयास है।- डॉ. धर्मेंद्र खांडाल, बायोलॉजिस्ट टाइगर वॉच संस्था, सवाईमाधोपुर


