83वें एआईपीओसी के एजेंडे में रहेंगे जी-20, विधायिका-न्यायपालिका संबंध

Sabal Singh Bhati
Sabal Singh Bhati
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जयपुर, 10 जनवरी ()। 11-12 जनवरी को होने वाले 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन की अध्यक्षता करने जयपुर पहुंचे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने मंगलवार को इसकी स्थायी समिति की अध्यक्षता की, जिसमें एजेंडा मदों पर विस्तृत चर्चा की गई।

बैठक में तय हुआ कि सम्मेलन के दौरान जी-20 में भारत के नेतृत्व और उसमें विधायिकाओं की भूमिका पर विस्तृत चर्चा होगी।

बिरला ने कहा, लोकतंत्र की जननी के रूप में भारत दुनियाभर के लोकतांत्रिक राष्ट्रों के लिए एक रोल मॉडल है। सभी देश संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक परंपराओं के लिए भारत की ओर देखते हैं। इस संदर्भ में यह महत्वपूर्ण है कि अगले एक वर्ष में जी-20 देशों के साथ भारत दुनियाभर के देशों में लोकतांत्रिक सशक्तिकरण की दिशा में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाएगा।

बिरला ने यह भी कहा कि संसद और विधानसभाओं को अधिक प्रभावी और जवाबदेह बनाने पर सम्मेलन के विभिन्न सत्रों के दौरान चर्चा होगी। जनता के मुद्दों का समाधान तभी हो सकता है, जब विधायिका और कार्यपालिका आम आदमी के प्रति अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता के साथ काम करें।

उन्होंने कहा कि विधायिकाओं के पीठासीन अधिकारी इस बात पर भी विचार करेंगे कि बदलते परिदृश्य में विधायिका कैसे प्रभावी भूमिका निभा सकती है।

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि संविधान ने विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका की जिम्मेदारियों और अधिकारों को परिभाषित किया है और यह आवश्यक है कि ये तीनों अंग संविधान की भावना के अनुसार सामंजस्यपूर्ण तरीके से काम करें। सम्मेलन के दौरान प्रतिनिधि इस बात पर भी मंथन करेंगे कि एक-दूसरे के कार्यों में दखलअंदाजी से बचते हुए आपसी संबंधों को कैसे मजबूत किया जाए।

सम्मेलन के दौरान देश की सभी विधानसभाओं को एक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाने के और प्रयासों पर भी चर्चा होगी। यह सभी विधानमंडलों के डिजिटल संसद मंच पर आने के बाद देश भर के विधायी निकायों में सूचनाओं और नवाचारों का त्वरित और आसान आदान-प्रदान सुनिश्चित करेगा। उन्होंने कहा कि इससे विधायकों और जनता के बीच संचार की दक्षता और गुणवत्ता भी बढ़ेगी।

दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान पूर्व में हुए सम्मेलनों में पारित प्रस्तावों की दिशा में हुई प्रगति की भी समीक्षा की जाएगी। इसमें विभिन्न विधायिकाओं में प्रक्रियाओं और नियमों में एकरूपता, विधायिकाओं में बैठकों की संख्या और बैठकों में सदस्यों की उपस्थिति, समिति प्रणाली को मजबूत करना आदि शामिल हैं।

एसजीके/एएनएम

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