गुजरात में गोबरधन योजना ग्रामीण जीवन में सतत बदलाव ला रही है। छोटाउदेपुर जिले के छोटे आदिवासी गांव नानी बुमदी में दीपिकाबेन कनयाभाई राठवा अपनी सुबह गोबर इकट्ठा करके शुरू करती हैं। वे गोबर को पानी में मिलाकर परिवार के बायोगैस प्लांट में डालती हैं। यह साधारण सी दिनचर्या उनके घरेलू जीवन को पूरी तरह बदल चुकी है। गोबरधन (गैल्वेनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज धन) योजना के तहत स्थापित यह बायोगैस यूनिट 42,000 रुपये की है। इसमें सरकार ने 37,000 रुपये की सब्सिडी दी, जबकि परिवार ने मात्र 5,000 रुपये का योगदान किया।
पहले चूल्हे पर खाना पकाने से धुआं भरता था, जिससे आंखें और फेफड़े जलते थे। अब बायोगैस से खाना साफ, तेज और स्वस्थ तरीके से बनता है। सास राठवा पिनाबन कहती हैं, “गैस से धुआं नहीं, खाना जल्दी पकता है और स्वाद भी बेहतर है।” खेतों के लिए लाभकारी लकड़ी और महंगे एलपीजी सिलेंडर से मुक्ति मिली है। बायोगैस का उप-उत्पाद बायो-स्लरी जैविक खाद बनता है, जो खेतों को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाता है और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करता है। गुजरात सरकार का लक्ष्य ग्रामीण स्वच्छता, नवीकरणीय ऊर्जा और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है।
प्रत्येक यूनिट पर बड़ी सब्सिडी डीआरडीए जिला समन्वयक चेतनभाई भोई के अनुसार, प्रत्येक यूनिट पर सरकार बड़ी सब्सिडी देती है। गोबरधन योजना अपशिष्ट को संपदा में बदलकर ग्रामीण परिवारों को सशक्त बना रही है। स्वच्छ ऊर्जा, बेहतर स्वच्छता और सतत खेती से यह योजना स्वच्छ, हरा और आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत की दिशा में एक चमकदार उदाहरण बन रही है।

