जयपुर। राज्य सरकार ने हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के लिए राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी और साहित्य के विकास के लिए राजस्थान साहित्य अकादमी की स्थापना की थी, लेकिन हिन्दी अकादमी में निदेशक और साहित्य अकादमी में अध्यक्ष का इंतजार है। हिन्दी के विकास एवं उन्नय के लिए दोनों ही संस्थानों में महत्वपूर्ण पद रिक्त होने से हिन्दी की किताबों सहित सभी कार्य पूरी तरह ठप पड़ा है। सत्ता बदलने के बाद भी पद खाली हैं।
हिन्दी ग्रंथ अकादमी में सरकार बदलने के बाद से ही अकादमी में स्थाई निदेशक का पद खाली है, इससे कामकाज काफी हद तक प्रभावित है। हैरत की बात है कि उपमुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमचन्द बैरवा स्वयं अकादमी के अध्यक्ष हैं, इसके बावजूद निदेशक का पद खाली है और एक आरएएस अधिकारी को अतिरिक्त प्रभार दे रखा है। निदेशक के अभाव में विद्यार्थियों को प्रतियोगी और उच्च शिक्षा में बदलावों पर आधारित प्रमाणिक, सस्ती और मानकीकृत पठन सामग्री समय पर नहीं मिल पा रही है। साहित्य के भी हालात खराब हैं।
राजस्थान साहित्य अकादमी में अध्यक्ष नहीं होने से पूरी तरह से हिन्दी साहित्य का काम नहीं हो पा रहा है। अकादमी से निकलने वाली मधुमति का प्रकाशन भी नियमित नहीं है। नए लेखकों और लेखन प्रस्तावों पर भी गंभीरता से विचार-विमर्श नहीं हो पा रहा है। राज्य सरकार ने अकादमी में भूगोल विभाग की सहायक प्रोफसर को भाषा सम्पादक नियुक्त किया है। अकादमी से प्रकाशित होने वाली बुनियाद पत्रिका का प्रकाशन भी नियमित नहीं हो पा रहा है। ‘हिन्दी के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी जनता के साथ सरकारों की भी है।
पूर्ववर्ती सरकारों ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए अकादमियां बनाई हैं तो उनमें स्थाई निदेशक और अध्यक्ष की नियुक्ति होनी चाहिए।’ – प्रो. जनक सिंह मीना, सम्पादक, अरावली उद्घोष और प्रोफेसर, गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय, गांधीनगर