कोटा की हिन्दू धर्मशाला की बदहाल स्थिति, 15 साल से नहीं बदले बिस्तर

Tina Chouhan

कोटा। पुराने शहर के बीच स्थित नगर निगम की धर्मशाला जिसका किराया भी बहुत कम है। इसमें बाहर से आने वाले लोग ठहरना चाहते हैं लेकिन उस धर्मशाला के कमरों की ऐसी हालत है कि अधिकतर लोग उन्हें देखकर ही वापस लौट रहे हैं। धर्मशाला के कमरों में पिछले करीब 15 साल से अधिक समय से बिस्तर तक नहीं बदले गए। जिससे गंदगी व फटे हुए गद्दे बीमारियां फैला रहे हैं। यह हालत है नगर निगम कोटा उत्तर के क्षेत्र में आर्य समाज रोड स्थित हिन्दू धर्मशाला की। रामपुरा क्षेत्र में आने वाली यह धर्मशाला काफी पुरानी बनी हुई है।

इसमें लोगों के रहने के लिए करीब 30 कमरे बने हुए हैं। साथ ही पहले अधिकारियों के रहने के लिए भी ऊपर की तरफ गेस्ट हाउस नुमा कमरे बने हुए हैं। लेकिन इस धर्मशाला की तरफ अधिकारियों से लेकर निगम के जनप्रतिनिधियों में से किसी का भी ध्यान नहीं होने से यह बदहाल की स्थिति में पहुंच गई है। धर्मशाला बाहर से आने वाले लोगों के ठहरने के लिए बनाई गई। बाहर से आने वाले जब कोटा में ऑटो वालों से रहने की सस्ती धर्मशाला के बारे में पूछते हैं तो अधिकतर लोगों को हिन्दू धर्मशाला ही लेकर जाते हैं।

लेकिन वहां आने वाले धर्मशाला के कमरों की हालत देखकर ही वापस लौट जाते हैं। धर्मशाला के आंगन में बालाजी का मंदिर बना हुआ है और खाने के लिए अन्नपूर्णा रसोई संचालित हो रही है। फटे हुए व गंदे गद्दे धर्मशाला में करीब 30 कमरे हैं। जिनमें से अधिकतर की हालत खराब है। उनमें लोहे के पलंग रखे हुए हैं। किसी में एक तो किसी में दो और तीन तक पलंग है। लेकिन वे पलंग बीच से झुके हुए हैं। जिससे उन पर सोने वालों की कमर ही दुखने लगती है।

वहीं उन पलंग पर बिछने वाले गद्दों की हालत देखकर तो लगता ही नहीं कि यह नगर निगम की किसी शहरी धर्मशाला के गद्दे हैं। इससे अच्छे तो गरीब से गरीब परिवार जो सड़क किनारे रहकर जीवन बिताता है उनके बिस्तर भी अच्छे रहते हैं। फटे व गंदे गद्दों को करीब 15 साल से नहीं बदला गया। गद्दों पर बिछाने के लिए चादर तक या तो हैं नहीं या फटी हुई है। जानकारों के अनुसार धर्मशाला में करीब 20 साल से अधिक समय से पुताई तक नहीं हुई है। बरसात में कमरों में पानी टपकता है।

24 घंटे का मात्र 50 रुपए किराया आमजन को रहने के लिए सस्ती जगह मिल सके उसे ध्यान में रखते हुए निगम की ओर से इसका किराया भी इतना कम रखा हुआ है कि गरीब से गरीब भी उसे वहन कर सके। 24 घंटे के मात्र 50 रुपए किराया है। इतना कम किराया होने के बाद भी धर्मशाला की हालत के कारण लोग वहां रहने को तैयार नहीं हैं। अधिकारियों वाले कमरों में भी बरसों से ताले लगे हैं। उनमें भी कोई नहीं ठहरता है। जानकारी के अनुसार वर्तमान में मात्र 3 कमरों में ही लोग रह रहे हैं।

उनमें भी दो कमरों में तो कोटा में होने वाली प्रतियोगी परीक्षा देने आए अभ्यर्थी रह रहे हैं। एक कमरे में पिता पुत्री हैं। युवती की परीक्षा है लेकिन उसकी ट्यूब लाइट ही झप-झप कर रही है। पंखे गायब, बिजली बोर्ड टूटे हुए धर्मशाला में 30 में से गिनती के ही कमरे ऐसे हैं जो सही हालत में होने से रहने लायक हैं। जबकि अधिकतर कमरों में या तो पंखे ही नहीं हैं यदि हैं भी तो चलते ही नहीं हैं। ट्यूब लाइटें लटकी हुई हैं। बिजली के बोर्ड टूटे हुए व तार खुले पड़े हैं।

जिनसे करंट का खतरा बना हुआ है। मोबाइल के चार्जिंग पाइंट तक काम नहीं कर रहे हैं। कमरों में सीलन आ रही है। प्लास्टर उखड़ा पड़ा है। खिड़कियां टूटी हुई हैं। वहीं पीने के पानी के लिए मात्र नल लगा हुआ है। वाटर कूलर है लेकिन वह खराब होने से बंद पड़ा है। इतना ही नहीं महिला शौचालय में दरवाजा तक नहीं है। धर्मशाला में नगर निगम की ओर से दो कर्मचारी व रात के समय में एक होमगार्ड को नियुक्त किया हुआ है।

जानकारों के अनुसार कर्मचारियों व गार्ड के वेतन पर निगम हर महीने करीब डेढ़ से पौने दो लाख रुपए खर्च कर रहा है। जबकि कमाई के नाम पर कमरों में रहने वाले लोगों से हर महीने मात्र 5 से 6 हजार रुपए किराया ही मिल रहा है। सूत्रों के अनुसार निगम अधिकारियों को इसकी स्थिति से कई बार अवगत करवाने के बाद भी किसी का कोई ध्यान नहीं है। किराया अधिक हो लेकिन सुविधा मिलें। मंगलवार को कोटा में परीक्षा देने आए कई अभ्यर्थी धर्मशाला में रहने के लिए आए लेकिन उसकी हालत देखकर वापस लौट गए।

बीकानेर से आए राहुल कहना था कि किराया भले ही दो गुना कर दें लेकिन बिस्तर व पलंग तो कम से कम सही होने चाहिए। सीकर निवासी धर्मराज का कहना है कि ऑटो वाले ने उन्हें इस धर्मशाला के बारे में बताया था। लेकिन यहां आकर देखा तो रहने का मन ही नहीं हुआ। परीक्षा देने आए हैं बीमार होने नहीं। धर्मशाला काफी पुरानी होने से उसकी हालत खराब है। उसे सुधारने के लिए हुड़को से मिलने वाले लोन से काम करवाने की योजना थी।

लेकिन उच्च स्तर से निर्देश मिले हैं कि इसे किसी एनजीओ के माध्यम से पीपीपी मोड पर संचालित करने का प्रयास किया जाए। यदि ऐसा नहीं होता है तो निगम अपने स्तर पर सही करवाएगा। बिस्तर बदलने से लेकर अन्य आवश्यक काम भी करवाने के प्रयास किए जाएंगे।

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